शनिवार, 30 जून 2012

भजन गीत: यह सब संसार विकल है ..... संजीव 'सलिल'

भजन गीत:
यह सब संसार विकल है .....
 संजीव 'सलिल'
*

*
यह सब संसार विकल है,
जो अविचल वह अविकल है...
*



तन-मन-धन के सब नाते,
जीवन की राह सिखाते.
निज हित की परिभाषाएँ-
तोते की तरह रटाते.
कोई न बताता किसका
कैसा कल था या कल है...
*



किसने-क्यों हमको भेजा?
क्या था पाथेय सहेजा?
हम जोड़े माया-गठरी-
कब कह पाये: 'अब ले जा?
औरों पर दोष लगाया-
कब बतलाया निज छल है...
*



कब साथ कौन आता है?
क्या संग कहो जाता है?
फिर क्यों झगड़े-घोटाले-
कर मनुआ पछताता है?
सदियों के ख्वाब सजाये-
किसने जाना कब पल है?...

*****

11 टिप्‍पणियां:

  1. ksantosh_45@yahoo.co.in द्वारा yahoogroups.com ekavita


    आ० सलिल जी
    बहुत खूब, अति सुन्दर। हर विधा व भावों में प्रवीण है आप। बधाई।
    सन्तोष कुमार सिंह

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  2. Pranava Bharti ✆ द्वाराशनिवार, जून 30, 2012 7:41:00 pm

    Pranava Bharti ✆ द्वारा yahoogroups.com ekavita


    आ. सलिल जी,
    बहुत सुंदर भजन -गीत !
    जीवन की वास्तविकता के दर्शन कराता,जगाता हुआ |
    [किसने क्यों हमको भेजा?]

    जिन्दगी भर रहे ख्याल कई ,
    उस खुदा से रहे सवाल कई|
    बुत बनाया, हमें भेज दिया,
    जिन्दगी ने किये बबाल कई ||
    सादर
    प्रणव भारती

    जवाब देंहटाएं
  3. Dr.M.C. Gupta ✆ द्वाराशनिवार, जून 30, 2012 7:44:00 pm

    Dr.M.C. Gupta ✆ द्वारा yahoogroups.com ekavita


    सलिल जी,

    बहुत सुंदर है--

    किसने-क्यों हमको भेजा?
    क्या था पाथेय सहेजा?
    हम जोड़े माया-गठरी-
    कब कह पाये: 'अब ले जा?
    औरों पर दोष लगाया-
    कब बतलाया निज छल है...

    --ख़लिश

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  4. sanjiv verma salil ✆ekavita

    मन में आते रहे भूचाल कई.
    तन ही पाले रहा जंजाल कई.
    तूने भेजा था कि हम मौज करें-
    हमने खुद को छला, चल चाल कई ||

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  5. sn Sharma ✆ द्वारा yahoogroups.comशनिवार, जून 30, 2012 7:46:00 pm

    sn Sharma ✆ द्वारा yahoogroups.com

    kavyadhara


    आ० आचार्य जी ,
    सुन्दर भाव लिये यथार्थता का बोध कराता भजन-गीत के लिये
    साधुवाद !
    कमल

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  6. Ram Gautam ✆

    7:44 pm (5 मिनट पहले)

    ekavita


    आ० सलिल जी,
    प्रणाम:
    यथार्थ से सजा "भजन गीत" पढ़कर अच्छा लगा, "आप हर विधा व भावों में प्रवीण है आप।"

    आ. संतोष कुमार सिंह जी की बात से मैं पूर्ण-रूप से सहमत हूँ |

    आपको ढेर सारी बधाई और धन्यवाद|
    किसने जाना पल कल है?...
    ( किसने जाना कब पल है?...।)
    सादर- गौतम

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  7. kusumsinha2000@yahoo.com ekavita


    priy sajiv salil ji
    bahut hi sundar kavita badhai bahut bahut badhai
    kusum

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  8. vijay ✆ vijay2@comcast.net द्वारा yahoogroups.com kavyadhara


    आ० ’सलिल’ जी,

    उत्कृष्ट भावों से भरपूर भजन के लिए साधुवाद!

    सच, बहुत ही अच्छा लगा ।

    विजय

    जवाब देंहटाएं
  9. "sn Sharma"
    kavyadhara@yahoogroups.com
    आ० आचार्य जी ,
    सुन्दर भाव लिये यथार्थता का बोध कराता भजन-गीत के लिये
    साधुवाद !
    कमल

    जवाब देंहटाएं
  10. pranavabharti@gmail.com द्वारा yahoogroups.com kavyadhara


    आ.आपका ज्ञान देखकर तो मैं नतमस्तक हूँ.......सीखना चाहकर भ़ी कितना सीख सकेंगे अब?
    सही मायनों में आप [आचार्य] हैं|
    आपको नमन
    कृपया आप मुझे तो नमन लिखकर शर्मिंदा न किया करें,
    बड़ी मेहरबानी होगी
    सादर
    धन्यवाद सहित
    प्रणव भारती

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  11. आदरणीय मैं केवल विद्यार्थी हूँ... यह संबोधन तो मित्रों का स्नेह भाव से दिया गया उपहार है. आपकी गुणग्राहकता को नमन.

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