ग़ज़ल दोहा:
राधा धारा प्रेम की....
संजीव 'सलिल'
*
राधा धारा प्रेम की, श्याम स्नेह-सौगात.
बरसाने में बरसती, बिन बरसे बरसात..
माखनचोर चुरा रहा, चित बनकर चितचोर.
सुनते गोपी-गोपिका नित नेहिल नगमात..
जो बोया सो काटता, विषधर करिया नाग.
ग्वाल-बाल गोपाल के असहनीय आघात..
आँख चुरा मुँह फेरकर, गया दिखाकर पीठ.
नहीं बेवफा वफ़ा ने, बदल दिये हालात.
तंदुल ले त्रैलोक्य दे, कभी बढ़ाए चीर.
गीता के उपदेश में, भरे हुए ज़ज्बात..
रास रचाए वेणुधर, ले गोवर्धन हाथ,
देवराज निज सिर धुनें, पा जनगण से मात..
पट्टी बाँधी आँख पर, सच से ऑंखें फेर.
नटवर नन्दकिशोर बिन, कैसे उगे प्रभात?
सत्य नीति पथ पर चले, राग-द्वेष से दूर.
विदुर समुज्ज्वल दिवस की, कभी न होती रात..
नेह नर्मदा 'सलिल' की, लहर रचाए रास.
राधा-मीरा कूल दो, कृष्ण-कमल जलजात..
कुञ्ज गली में फिर रहा, कर मन-मंदिर वास.
हुआ साँवरा बावरा, 'सलिल' सृष्टि-विख्यात..
२२.०८.२००५
****************************
http://divyanarmada.blogspot.com
http://hindihindi.in
राधा धारा प्रेम की....
संजीव 'सलिल'
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राधा धारा प्रेम की, श्याम स्नेह-सौगात.
बरसाने में बरसती, बिन बरसे बरसात..
माखनचोर चुरा रहा, चित बनकर चितचोर.
सुनते गोपी-गोपिका नित नेहिल नगमात..
जो बोया सो काटता, विषधर करिया नाग.
ग्वाल-बाल गोपाल के असहनीय आघात..
आँख चुरा मुँह फेरकर, गया दिखाकर पीठ.
नहीं बेवफा वफ़ा ने, बदल दिये हालात.
तंदुल ले त्रैलोक्य दे, कभी बढ़ाए चीर.
गीता के उपदेश में, भरे हुए ज़ज्बात..
रास रचाए वेणुधर, ले गोवर्धन हाथ,
देवराज निज सिर धुनें, पा जनगण से मात..
पट्टी बाँधी आँख पर, सच से ऑंखें फेर.
नटवर नन्दकिशोर बिन, कैसे उगे प्रभात?
सत्य नीति पथ पर चले, राग-द्वेष से दूर.
विदुर समुज्ज्वल दिवस की, कभी न होती रात..
नेह नर्मदा 'सलिल' की, लहर रचाए रास.
राधा-मीरा कूल दो, कृष्ण-कमल जलजात..
कुञ्ज गली में फिर रहा, कर मन-मंदिर वास.
हुआ साँवरा बावरा, 'सलिल' सृष्टि-विख्यात..
२२.०८.२००५
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Mukesh Srivastava ✆ ekavita
जवाब देंहटाएंआचार्य जी,
यह मूढ़ क्या कह सकता है आपकी लेखनी के लिए सिवाय,
इन पंक्तियों के ---------------------
सुन्दर दोहे सलिल जी जला रहे दिन रात
काव्यधारा में भर रहे जो नित नए प्रकाश
बहुत बहुत बधाई इन सुन्दर दोहों के लिए
मुकेश इलाहाबादी
Indira Pratap ✆ yahoogroups.com kavyadhara
जवाब देंहटाएंaadarniy sanjiv ji ,
anupras ki kya adbhut chhata bikheri hai aapne. man mayur naach utha. sadhuvad.
Regards,
Indira Sharma
deepti gupta ✆ द्वारा yahoogroups.com
जवाब देंहटाएंkavyadhara
चारु रचना, रुचिकर सृजन !
सादर,
दीप्ति
Antara Karvade
जवाब देंहटाएंgreatantara@gmail.com
सलिल जी!
आपकी रचना पढ़कर भला लगा. एक पंक्ति समझने में थोड़ी कम आसानी हुई, इसका अर्थ समझा सकेंगे?
राधा-मीरा कूल दो, कृष्ण-कमल जलजात
सादर
अंतरा करवडे
vijay2 ✆ द्वारा yahoogroups.com
जवाब देंहटाएंkavyadhara
आ० ’सलिल’ जी,
रूचिकर दोहों के लिए साधुवाद,
विजय
deepti gupta ✆ द्वारा yahoogroups.com
जवाब देंहटाएंkavyadhara
कमाल कर दिया संजीव जी !
=D> applause =D> applause =D> applause =D> applause =D> applause
आपके परिश्रम को नमन !
सादर,
दीप्ति