बुधवार, 13 जून 2012

गीत: थिरक रही है... --संजीव 'सलिल'


गीत: 

थिरक रही है... 

-- संजीव 'सलिल'

*
थिरक रही है,
मृदुल चाँदनी थिरक रही है...
*

*
बाधाओं की चट्टानों पर
शिलालेख अंकित प्रयास के.
नेह नर्मदा की धारा में,
लहर-भँवर प्रवहित हुलास के.
धुआँधार का घन-गर्जन रव,
सुन-सुन रेवा सिहर रही है.
मृदुल चाँदनी थिरक रही है...
*

 
*
मौन मौलश्री ध्यान लगाये,
आदम से इन्सान बनेगा.
धरती पर रहकर जीते जी,
खुद अपना भगवान गढ़ेगा.
जिजीविषा सांसों की अप्रतिम
आस-हास बन बिखर रही है.
मृदुल चाँदनी थिरक रही है...
*



*
अक्षर-अक्षर अंकित करता,
संकल्पों की नव चेतनता.
शब्द-शब्द से झंकृत होती,
भाव, शिल्प, लय की नूतनता.
पुरा-पुरातन चिर नवीन बन
आत्म वेदना निखर रही है
मृदुल चाँदनी थिरक रही है...
*

1 टिप्पणी:

  1. वाह ! कितनी सुन्दर कविता ! महादेवी वर्मा का शब्द शिल्प याद आ गया ! जितना पढ़ो और पढ़ने का मन करता है !

    बाधाओं की चट्टानों पर
    शिलालेख अंकित प्रयास के.
    नेह नर्मदा की धारा में,
    लहर-भँवर प्रवहित हुलास के.
    धुआँधार का घन-गर्जन रव,
    सुन-सुन रेवा सिहर रही है.
    मृदुल चाँदनी थिरक रही है...

    सच ! इसे कहते है गुरु की गुरुता ! आनंद ही अनद !

    Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA yesterday
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    मौन मौलश्री ध्यान लगाये,
    आदम से इन्सान बनेगा.
    धरती पर रहकर जीते जी,
    खुद अपना भगवान गढ़ेगा.
    जिजीविषा सांसों की अप्रतिम
    आस-हास बन बिखर रही है.
    मृदुल चाँदनी थिरक रही है.

    सुन्दर भाव सुन्दर रचना हेतु बधाई, आदरणीय सलिल जी, सादर अभिवादन के साथ.

    Comment by Ambarish Srivastava on Sunday
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    Albela Khatri

    आदरणीय संजीव सलिल जी,
    आपका यह अभिनव, अनुपम और अनूठा गीत एक बार नहीं, अनेकानेक बार बांचा ...हर बार आनंद में वृद्धि होती गई . यों प्रतीत हुआ मानो
    काव्य की देवी साक्षात् दर्शन दे रही है और मैं मंत्रमुग्ध सा एकटक निहार रहा हूँ .

    यों लगा जैसे काव्य-सृजन के उस श्रेष्ठतम काल में पहुँच गया जहाँ पन्त, निराला, दिनकर, रंग, फ़िराक़, बच्चन और द्विवेदी जैसे मनीषियों की सुगंध प्रसरी है.
    आपकी लेखनी के प्रति नतमस्तक मैं इस गीत का ख़ूब ख़ूब अभिनन्दन करता हूँ

    बाधाओं की चट्टानों पर
    शिलालेख अंकित प्रयास के.
    नेह नर्मदा की धारा में,
    लहर-भँवर प्रवहित हुलास के.
    धुआँधार का घन-गर्जन रव,
    सुन-सुन रेवा सिहर रही है.
    मृदुल चाँदनी थिरक रही है...

    हम जैसे नौसिखियों के लिए प्रेरणा का उजाला उपलब्ध करने वाले इस गीत के शब्द- सौन्दर्य और सरस शिल्प मेरा को शत शत नमन
    जय हो !

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