शनिवार, 9 जून 2012

नवगीत: जो नहीं हासिल... संजीव 'सलिल'

नवगीत:
जो नहीं हासिल...
संजीव 'सलिल'
*
जो नहीं हासिल
वही सब चाहिए...
*
जब किया कम काम
ज्यादा दाम पाया.
या हुए बदनाम
या यश-नाम पाया.
भाग्य कुछ अनुकूल
थोड़ा वाम पाया.

जो नहीं भाया
वही अब चाहिए...
*
चैन पाकर मन हुआ
बेचैन ज्यादा.
वजीरों पर हुआ हावी
चतुर प्यादा.
किया लेकिन निभाया
ही नहीं वादा.

पात्र जो जिसका
वही कब चाहिए...
*
सगे सत्ता के रहे हैं
भाट-चारण.
संकटों का, कंटकों का
कर निवारण.
दूर कर दे विफलता के
सफल कारण.

बंद मुट्ठी में
वही रब चाहिए...
*
कहीं पंडा, कहीं झंडा
कहीं डंडा.
जोश तो है गरम
लेकिन होश ठंडा.
गैस मँहगी हो गयी
तो जला कंडा.

पाठ-पूजा तज
वही पब चाहिए..
*
बिम्ब ने प्रतिबिम्ब से
कर लिया झगड़ा.
मलिनता ने धवलता को
'सलिल' रगडा.
शनिश्चर कमजोर
मंगल पड़ा तगड़ा.

दस्यु के मन में
छिपा नब चाहिए...
***
Acharya Sanjiv verma 'Salil'
http://divyanarmada.blogspot.com
http://hindihindi.in



2 टिप्‍पणियां:

  1. sn Sharma ✆ द्वारा yahoogroups.com kavyadhara


    आ० आचार्य जी,
    आज की व्यवस्था और राजनैतिक परिप्रेक्ष्य में इमानदार
    कर्मचारी की स्थिति का सही चित्रण | साधुवाद
    सादर
    कमल

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  2. Rakesh Khandelwal ekavita


    सगे सत्ता के रहे हैं
    भाट-चारण.
    संकटों का, कंटकों का
    कर निवारण.
    दूर कर दे विफलता के
    सफल कारण.

    जो सलिल की कलम से झर
    गीत आया
    सत्य को भी आईना
    उसने दिखाया
    वक्त के भी हाथ में जब
    कुछ न आया

    रह गया जो शेष वह
    तब चाहिये.

    सादर

    राकेश

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