सोमवार, 21 मई 2012

गीत: प्रभु किस विधि... --संजीव 'सलिल'

गीत:
प्रभु किस विधि...
संजीव 'सलिल'
*
प्रभु! किस विधि
विधि को ध्याऊँ मैं?...
*
आँख मूंदकर बैठा जब-जब
अंतर्मन में पैठा जब-जब
कभी कालिमा, कभी लालिमा-
बिंदु, वृत्त, वर्तुल पाऊँ मैं
प्रभु! किस विधि
विधि को ध्याऊँ मैं?...
*
चित्त-वृत्ति एकाग्र कर रहा,
तज अशांति मन शांति वर रहा.
लीं-छोड़ी श्वासें-प्रश्वासें-
स्वर-सरगम-लय हो पाऊँ मैं
प्रभु! किस विधि
विधि को ध्याऊँ मैं?...
*
बनते-मिटते सरल -वक्र जो,
जागृत हो, है सुप्त चक्र जो.
कुण्डलिनी से मन-मंदिर में-
दीप जला, जल-जल जाऊँ मैं
प्रभु! किस विधि
विधि को ध्याऊँ मैं?...
*

5 टिप्‍पणियां:

  1. Rakesh Khandelwal ✆ekavita


    कितने प्रश्न उठे हैं मन में
    चलते फ़िरते जागे सोते
    कहाँ तिरोहित हो जाते हैं
    उड़ उड़ कर हाथों के तोते
    इक दिन उत्तर पा जाऊँ मैं
    तब विधिवत विधि को ध्याऊँ मैं.

    आपकी समग्रता को सादर प्रणाम,

    राकेश

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  2. आपका आशीष पाया
    यही है सौभाग्य मेरा.

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  3. sn Sharma ✆ द्वारा yahoogroups.comमंगलवार, मई 22, 2012 8:24:00 pm

    sn Sharma ✆ द्वारा yahoogroups.com

    kavyadhara


    आ० आचार्य जी ,
    साधनामय, आराधनामय सुन्दर गीत को नमन |
    सादर
    कमल

    जवाब देंहटाएं
  4. achalkumar44@yahoo.com ekavita

    आचार्यजी,

    हमेशा की तरह आप की कविता में एक नयापन मिला ।
    विन्दु में सिन्धु है
    वृत्त में एकता
    और वर्तुल में है सृष्टि भर की कथा ।


    जाही विध राखे राम, ताही विधि रहिये||

    अचल वर्मा

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  5. shar_j_n@yahoo.com ekavita


    अतिसुन्दर! अतिसुन्दर!

    सादर शार्दुला

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