गीत:
प्रभु जैसी चादर दी तूने...संजीव 'सलिल'
*
*
प्रभु जैसी चादर दी तूने
मैंने की स्वीकार.
जैसी भी मैं रख पाया
अब तू कर अंगीकार...
*
तुझसे मेरी कोई न समता,
मैं अक्षम, तू है सक्षमता.
तू समर्थ सृष्टा निर्णायक,
मेरा लक्षण है अक्षमता.
जैसा नाच नचाया नाचूँ-
विजयी हूँ वर हार.
प्रभु जैसी चादर दी तूने
मैंने की स्वीकार...
*
तू ऐसा हो, तू वैसा कर,
मेरी रही न शर्त.
क्यों न मुझे स्वीकार रहा हरि!
ज्यों का त्यों निश्शर्त.
धर्माधर्म कहाँ-कैसा
हारो अब सकूँ बोसार.
प्रभु जैसी चादर दी तूने
मैंने की स्वीकार...
*
जला न पाये आग तनिक प्रभु!
भीगा न पाये पानी.
संचयकर्ता मुझे मत बना,
और न अवढरदानी.
जग-नाटक में 'सलिल' सम्मिलित
हो निर्लिप्त निहार.
प्रभु जैसी चादर दी तूने
मैंने की स्वीकार...
***
Acharya Sanjiv verma 'Salil'
http://divyanarmada.blogspot.com
http://hindihindi.in
माननीय आचार्य जी ,
जवाब देंहटाएंसच्चे भक्त की सरल पुकार
करे सदा सबका उपकार
दिल से निकला निश्छल प्यार
नहला देगा देव हजार ।।
अचल वर्मा
sn Sharma ✆ द्वारा yahoogroups.com
जवाब देंहटाएंkavyadhara
आ० आचार्य जी ,
समर्पण से ओतप्रोत सुन्दर भजन-गीत | साधुवाद
सादर
कमल
pranavabharti@gmail.com द्वारा yahoogroups.com ekavita
जवाब देंहटाएंआ.आचार्य जी,
आपकी स्वीकारोक्ति बड़ी निश्छल है |बात जरा हटकर है परन्तु मुझे याद आ रहा है.....'मैली चादर ओढके कैसे द्वार तिहारे आऊँ .....'
आपकी गहराई बिलकुल इसी भाव में मिलती है यद्यपि आपकी स्वीकारोक्ति एकअलग प्रकार का पवित्रता का वातावरण सर्जती है|
आपके भावों को प्रणाम
सादर
प्रणव भारती
shriprakash shukla ✆ द्वारा yahoogroups.com ekavita
जवाब देंहटाएंआदरणीय आचार्य जी,
परम पिता की अनुकम्पा के, हो सच्चे हक़दार
बिन प्रयास ही रच देते हो स्तुति आप हज़ार
आपकी यह रचना भी सदैव की तरह अत्यंत मनमोहक लगी |
सादर
श्रीप्रकाश शुक्ल
achalkumar44@yahoo.com ekavita
जवाब देंहटाएंमाननीय आचार्य जी ,
सच्चे भक्त की सरल पुकार
करे सदा सबका उपकार
दिल से निकला निश्छल प्यार
नहला देगा देव हजार ।।
अचल वर्मा
drdeepti25@yahoo.co.in द्वारा yahoogroups.com kavyadhara
जवाब देंहटाएंआदरणीय संजीव जी,
आपकी हर रचना सुचिंतित, सन्देशपरक, प्रेरक और मूल्यों को जागृत करने वाली होती है ! उसी तरह यह ईश-गीत या ईश -वंदना /भजन भी बहुत शान्ति व् आत्मबल देने वाला है ! भाव - भाषा सभी तरह से उत्कृष्ट है !
साधुवाद !
सादर,
दीप्ति
सुंदर प्रार्थना।
जवाब देंहटाएंमन की वीणा के होते हैं जब जब झंकृत तार
जवाब देंहटाएंशब्दों को एकीकृत करते उठती यही पुकार
तू ही लेखक तू ही पाठक और सूत्र का धार
माध्यम है संजीव सलिल, कर नमन मेरा स्वीकार.
सादर
राकेश
santosh.bhauwala@gmail.com द्वारा yahoogroups.com kavyadhara
जवाब देंहटाएंआदरणीय आचार्य जी ,भक्ति गीत समर्पण की भावना से ओत प्रोत और अति प्रभावशाली है साधुवाद !!
संतोष भाऊवाला