रविवार, 20 मई 2012

गीत: अनछुई ये साँझ --संजीव 'सलिल'

गीत:
अनछुई ये साँझ
संजीव 'सलिल'
*
 
*
साँवरे की याद में है बाँवरी 
अनछुई ये साँझ...
*
दिन की चौपड़ पर सूरज ने,
जमकर खेले दाँव.
उषा द्रौपदी के ज़मीन पर,
टिक न सके फिर पाँव.

बाधा मरुथल, खे आशा की नाव री
प्रसव पीढ़ा बाँझ.
साँवरे की याद में है बाँवरी 
अनछुई ये साँझ...
*
अमराई का कतल किया,
खोजें खजूर की छाँव.
नगर हवेली हैं ठाकुर की,
मुजरा करते गाँव.

सांवरा सत्ता पे, तजकर साँवरी
बज रही दरबार में है झाँझ.
साँवरे की याद में है बाँवरी 
अनछुई ये साँझ...
*

4 टिप्‍पणियां:

  1. kusum sinha ✆ ekavita


    priy sanjiv ji
    etna sundar kaise likh lete hain? mujhe bhi ashirwad dijiye na? ki mai etna sundar likh sakun
    kusum

    जवाब देंहटाएं
  2. achal verma ✆


    मन भावन गीत , अति सुन्दर ।
    आचार्य जी के शब्द तो मधुर तम होने ही हैं ।।


    अचल वर्मा

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  3. shriprakash shukla ✆ yahoogroups.com ekavita


    आदरणीय आचार्य जी,
    अद्वितीय सदैव की तरह | बधाई हो
    सादर
    श्रीप्रकाश शुक्ल
    --
    Web:http://bikhreswar.blogspot.com/

    जवाब देंहटाएं
  4. shar_j_n ✆ shar_j_n@yahoo.com

    ekavita


    आ. आचार्य जी,
    ये बिलकुल फेयर नहीं कि आपको माँ सरस्वती यों फेवर करतीं हैं :)
    बहुत सुन्दर हैं निम्नलिखित:

    दिन की चौपड़ पर सूरज ने,

    जमकर खेले दाँव.

    बाधा मरुथल, खे आशा की नाव री
    प्रसव पीढ़ा बाँझ.

    *
    अमराई का कतल किया,
    खोजें खजूर की छाँव.

    सादर शार्दुला

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