शनिवार, 5 मई 2012

मुक्तिका: --संजीव 'सलिल'

मुक्तिका
संजीव 'सलिल'
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राह ताकते उम्र बितायी, लेकिन दिल में झाँक न पाये.
तनिक झाँकते तो मिल जाते, साथ सलिल यादों के साये..

दूर न थे तो कैसे आते?, तुम ही कोई राह बताते.
क्या केवल आने की खातिर, दिल दिल के बाहर दिल पाये?

सावन में दिल कहीं रहे औ', फागुन में दे साथ किसी का.
हमसे यही नहीं हो पाया, तुमको लगाते रहे पराये..

तुमने हमको भुला दिया तो शिकवा-गिला करें क्यों बोलो?
अर्ज़ यही मत करो शिकायत हमने क्यों संबंध निभाये..

'सलिल' विरह के अँधियारे भी हमको अपने ही लगते हैं.
घिरकर इनमें स्मृतियों के हमने शत-शत दीप जलाये..

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Acharya Sanjiv verma 'Salil'

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