गुरुवार, 10 मई 2012

गीत: खो बैठे पहचान... --संजीव 'सलिल'

गीत:
खो बैठे पहचान...
संजीव 'सलिल'
*

*
खो बैठे पहचान
हाय! हम भीड़ हो गये...
*
विधि ने किया विचार
एक से सृज अनेक दूँ.
करूँ सृष्टि संरचना
संवेदन-विवेक दूँ.

हो अनेक से एक
सृजें सब अपनी दुनिया.
जुडें एक से एक
तजें हँस अपनी दुनिया.

समय हँसा, घर नहीं रहा
हम नीड़ हो गये...
*
धरा-बीज से अंकुर फूटे,
पल्लव विकसे.
मिला शाख पर आश्रय
पंछी कूके-विहँसे.

कली-पुष्प बन सुरभि
बिखेरी- जग आनंदित.
चढ़े ईश-चरणों में
बनकर हार सुवंदित.

हुई जीत मनमीत
अहं जड़, पीड़ हो गये...
*
छिना मायका, मिला
सासरा- स्नेह नदारत.
व्यर्थ हुईं साधना
वंदना प्रेयर आयत.

अमृत छकने गये,
हलाहल हर पल पाया.
नीलकंठ हो सके न
माया ने भरमाया.
बाबुल खोया सजन
न पाया- हीड़ हो गये...
*
टीप: हीड़ना बुन्देली शब्द = मन-प्राण से याद करना.
Acharya Sanjiv verma 'Salil'
http://divyanarmada.blogspot.com
http://hindihindi.in



5 टिप्‍पणियां:

  1. Mridul Kirti ✆

    मुझे
    मानव की विसंगतियों का ऐसा सजीव चित्रण, सटीक शब्दों में, सीधे मर्म पर जा लगने वाले सत्य बेधी शब्द -----एक अति सुन्दर रचना -साधुवाद
    डॉ.मृदुल

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  2. sn Sharma ✆ द्वारा yahoogroups.com
    kavyadhara


    सूफियाना भाव से भरा यह गीत बहुत रुचिकर लगा | साधुवाद

    छिना मायका, मिला
    सासरा- स्नेह नदारत.
    व्यर्थ हुईं साधना
    वंदना प्रेयर आयत.
    अति सुन्दर और मार्मिक | वाह



    सादर
    कमल

    जवाब देंहटाएं
  3. vijay2 ✆ द्वारा yahoogroups.com

    kavyadhara



    आ० ‘सलिल’ जी,

    विधि ने किया विचार
    एक से सृज अनेक दूँ.
    करूँ सृष्टि संरचना
    संवेदन-विवेक दूँ.

    सृष्टि की रचना के आधार पर लिखा यह गीत मनोहारी है।

    बधाई,

    विजय

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  4. To: kavyadhara@yahoogroups.com

    वाह, वाह संजीव जी, अति मनोहारी सृजन !
    सादर,
    कनु

    जवाब देंहटाएं
  5. - shishirsarabhai@yahoo.com

    उत्कृष्ट रचना !
    सादर,
    शिशिर

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