मुक्तिका:
साहब
संजीव 'सलिल'
*
कुछ पसीना बहाइए साहब.
रोटियाँ तब ही खाइए साहब..
बैठे-बैठे कमायें क्यों लाखों?
जो मिला वह पचाइए साहब..
उसकी लाठी में आवाज़ नहीं.
वक़्त से खौफ खाइए साहब.
साँप जब निकल जाए तब आकर
लट्ठ जमकर चलाइए साहब..
गलतियाँ क्यों करें? टालें कल पर.
रस्म रस्मी चलाइए साहब..
हर दरे-दिल पे न दस्तक देना.
एक दिल में समाइये साहब..
शौक तो शगल है अमीरों का.
फ़र्ज़ हँसकर निभाइए साहब..
नाम बदनाम का भी होता है.
रह न गुमनाम जाइए साहब..
अंत होता है अँधेरे का 'सलिल'.
गीत खुशियों के गाइए साहब..
साहब
संजीव 'सलिल'
*
कुछ पसीना बहाइए साहब.
रोटियाँ तब ही खाइए साहब..
बैठे-बैठे कमायें क्यों लाखों?
जो मिला वह पचाइए साहब..
उसकी लाठी में आवाज़ नहीं.
वक़्त से खौफ खाइए साहब.
साँप जब निकल जाए तब आकर
लट्ठ जमकर चलाइए साहब..
गलतियाँ क्यों करें? टालें कल पर.
रस्म रस्मी चलाइए साहब..
हर दरे-दिल पे न दस्तक देना.
एक दिल में समाइये साहब..
शौक तो शगल है अमीरों का.
फ़र्ज़ हँसकर निभाइए साहब..
नाम बदनाम का भी होता है.
रह न गुमनाम जाइए साहब..
अंत होता है अँधेरे का 'सलिल'.
गीत खुशियों के गाइए साहब..
drdeepti25@yahoo.co.in द्वारा yahoogroups.com kavyadhara
जवाब देंहटाएंअतिमनोरंजक .....
सादर
दीप्ति
sn Sharma ✆ ahutee@gmail.com द्वारा yahoogroups.com kavyadhara
जवाब देंहटाएंआ० आचार्य जी,
मुक्तिकाएं मन पर गारा छाप छोडती हैं | इनमें निहित आपकी विभिन्न कल्पनाओं ,भाव और शिल्प को नमन |
विशेष-
" उसकी लाठी में है आवाज़ नहीं.
वक़्त से खौफ खाइए साहब. "
सादर
कमल
Mahendra Mishra
जवाब देंहटाएंशौक तो शगल है अमीरों का.
फ़र्ज़ हँसकर निभाइए साहब..
नाम बदनाम का भी होता है.
रह न गुमनाम जाइए साहब..
bahut sundar sir..abhaar
Harish Arora, sahityakar sansad.
जवाब देंहटाएंगलतियाँ क्यों करें? टालें कल पर.
रस्म रस्मी चलाइए साहब..
waah kya khoob kaha....