सोमवार, 16 अप्रैल 2012

दोहा सलिला: दोहा कहे मुहावरे --संजीव 'सलिल'

दोहा सलिला:
दोहा कहे मुहावरे
संजीव 'सलिल'
*
'अपने मुँह मिट्ठू बने', मियाँ हकीकत भूल.
खुद को कोमल कहे ज्यों, पैना शूल बबूल.१.
*
'रट्टू तोता' बन करें, देश-भक्ति का जाप.
लूट रहे हैं देश को, नेताजी कर पाप.२.
*
कभी न देखी महकती, 'सलिल' फूल की धूल.
किन्तु महक-खिलता मिला, हमें 'धूल का फूल'.३.
*
दिनकर ने दिन कर कहा, 'जो जागे सो पाय'.
'जो सोये सो खोय' हर, अवसर व्यर्थ गंवाय.४.
*
'जाको राखे साइयाँ', वाको मारे कौन?
नजर उतारें व्यर्थ मत, लेकर राई-नौन.५.
*
'अगर-मगर कर' कर रहे, पाया अवसर व्यर्थ.
'बना बतंगड़ बात का', 'करते अर्थ अनर्थ'.६.
*
'चमड़ी जाए पर नहीं दमड़ी जाए' सोच.
जिसकी- उसकी सोच में, सचमुच है कुछ लोच.७.
*
'कुछ से 'राम-रहीम कर', कुछ से 'कर जय राम'.
'राम-राम' दिल दे मिला, दूरी मिटे तमाम.८.
*
सर कर सरल न कठिन तज, कर अनवरत प्रयास.
'तिल-तिल जल' दीपक हरे, तम दे सतत उजास.९.
*
जब खाल से हो सामना, शिष्ट रहें नि:शब्द.
'बाल न बाँका कर सके', कह कोई अपशब्द.१०.
*
खल दे सब जग को खलिश, तपिश कष्ट संताप.
औरों का 'दिल दुखाकर',  करता है नित पाप.११.
*

8 टिप्‍पणियां:

  1. sn sharma
    अति सुन्दर आप जैसे सन्तो की अम्रित वाणी सरे मनस्ताप दूर करती है ।

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  2. Mukesh Srivastava ✆kavyadhara


    वाह, वाह संजीव जी , क्या कहने .......! कमाल कर दिया आपने. अंतिम दोहा तो लाजवाब बन पड़ा है.
    आपकी लेखनी यूं ही अनवरत सक्रिय रहे

    असंख्य दुआओं के साथ,

    मुकेश

    --- Mon, 16/4/12

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  3. deepti gupta ✆

    संजीव जी,
    मुहावरे का दोहों में जिस कुशलता से आपने प्रयोग किया है - वह अद्भुत मनोहारी बन पड़ा है !

    'अपने मुँह मिट्ठू बने', मियाँ हकीकत भूल.
    खुद को कोमल कहे ज्यों, पैना शूल बबूल.१...................... खूब

    रट्टू तोता' बन करें, देश-भक्ति का जाप.
    लूट रहे हैं देश को, नेताजी कर पाप.२.....................सही कहा

    खल दे सब जग को खलिश, तपिश कष्ट संताप.
    औरों का 'दिल दुखाकर', करता है नित पाप.११...................बहुत खूब

    ढेर सराहना स्वीकारें !

    सादर,
    दीप्ति

    जवाब देंहटाएं
  4. sn Sharma ✆ द्वारा yahoogroups.com

    आ० आचार्य जी,
    अत्यंत सटीक,सामयिक और मुहावारेदार दोहों के लिये अशेष सराहना स्वीकार कीजिये|

    खल के कार्य कलाप का अहंकार है मूल

    रसराज की अभिलाष में बोये पेड़ बबूल
    **

    बात न मानै संत की सुनतै ही गरियाय

    ऐसे बगुला-भगत को कौन भला पतियाय
    * *
    कमल

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  5. drdeepti25@yahoo.co.in

    संजीव जी,
    मुहावरे का दोहों में जिस कुशलता से आपने प्रयोग किया है- वह अद्भुत मनोहारी बन पड़ा है!

    'अपने मुँह मिट्ठू बने', मियाँ हकीकत भूल.
    खुद को कोमल कहे ज्यों, पैना शूल बबूल.१......................... खूब

    रट्टू तोता' बन करें, देश-भक्ति का जाप.
    लूट रहे हैं देश को, नेताजी कर पाप.२......................सही कहा

    खल दे सब जग को खलिश, तपिश कष्ट संताप.
    औरों का 'दिल दुखाकर', करता है नित पाप.११.....................बहुत खूब

    ढेर सराहना स्वीकारें !

    सादर,
    दीप्ति

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  6. दोहा सलिला बहुत सुंदर है, बधाई स्वीकारें।

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