हिंदी ग़ज़ल:
नमन में आये
संजीव 'सलिल'
*
पुनीत सुन्दर सुदेश भारत, है खुशनसीबी शरण में आये.
यहाँ जनमने सुरेश तरसें, माँ भारती के नमन में आये..
जमीं पे ज़न्नत है सरजमीं ये, जहेनसीबी वतन में आये.
हथेलियों पे लिए हुए जां ,शहीद होने चमन में आये..
कहे कलम वो कलाम मौला, मुहावरा बन कहन में आये..
अना की चादर उतर फेंकें, मुहब्बतों के चलन में आये..
करे इनायत कोई न हम पर, रवायतों के सगन में आये.
भरी दुपहरी बहा पसीना, शब्द-उपासक सृजन में आये..
निशा करे क्यों निसार सपने?, उषा न आँसू 'सलिल गिराये.
दिवस न हारे, न सांझ रोये, प्रयास-पंछी गगन में आये..
मिले नयन से नयन विकल हो, मन, उर, कर, पग 'सलिल' मिलाये.
मलें अबीरा सुनें कबीरा, नसीहतों के हवन में आये..
**************************************
बह्र: बहरे मुतकारिब मकबूज़ असलम मुदायाफ़
रदीफ़: में आये, काफिया: अन
नमन में आये
संजीव 'सलिल'
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पुनीत सुन्दर सुदेश भारत, है खुशनसीबी शरण में आये.
यहाँ जनमने सुरेश तरसें, माँ भारती के नमन में आये..
जमीं पे ज़न्नत है सरजमीं ये, जहेनसीबी वतन में आये.
हथेलियों पे लिए हुए जां ,शहीद होने चमन में आये..
कहे कलम वो कलाम मौला, मुहावरा बन कहन में आये..
अना की चादर उतर फेंकें, मुहब्बतों के चलन में आये..
करे इनायत कोई न हम पर, रवायतों के सगन में आये.
भरी दुपहरी बहा पसीना, शब्द-उपासक सृजन में आये..
निशा करे क्यों निसार सपने?, उषा न आँसू 'सलिल गिराये.
दिवस न हारे, न सांझ रोये, प्रयास-पंछी गगन में आये..
मिले नयन से नयन विकल हो, मन, उर, कर, पग 'सलिल' मिलाये.
मलें अबीरा सुनें कबीरा, नसीहतों के हवन में आये..
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बह्र: बहरे मुतकारिब मकबूज़ असलम मुदायाफ़
रदीफ़: में आये, काफिया: अन
ACHCHHEE GAZAL KE LIYE BADHAAEE ,
जवाब देंहटाएंSALIL JI .