रविवार, 12 फ़रवरी 2012

दोहा सलिला: गले मिले दोहा यमक --संजीव 'सलिल'

दोहा सलिला:

गले मिले दोहा यमक

संजीव 'सलिल'
*
जाम पियें मत, खाइए, फल का फल आरोग्य.
जाम न यातायात हो, भोग सकें जो भोग्य..
*
अ-मर देव मानव स-मर, समर समय के साथ.
लेकर दो-दो हाथ, हम करते दो-दो हाथ..
*
अ-मय न रुचती, स-मय हो, साक़ी  तब आनंद.
कु-समय भी सु-समय लगे, अगर संग हो छंद..
*
दी! वट के नीचे चलें, भू गोबर से लीप.
तम हर जग उजियारने, दीवट-बालें दीप..
*
अगिन अ-गिन तरें करें, नभ-आंगन में खेल.
चाँद-चाँदनी जनक-जननि,  कहें न तजना मेल..
*
दिव्य नर्मदा तीर पर, दिव्य नर्मदा तीर.
दें अगस्त्य श्री राम को, हरें आसुरी  पीर..
*
पीर पीर को हो नहीं, रहता रब में लीं.
यारब ऐसी पीर हो, तुझ में सकूँ विलीन..
*
सहमत हों या अ-सहमत, मत करिए तकरार.
मत-प्रतिमत रखकर सु-मत, करलें अंगीकार..
*
डगमग-डगमग रख रहा, डग मग पर कल आज.
कल आशीषे 'पग जमा, तभी बने सरताज'..
*
ना-गिन नागिन सी लटें, बिन गिन ले तू चूम.
गिन-गिनकर थक जाएगा, अनगिन हैं मालूम.. 
*
तुझे लगी धुन कौन सी, मौन न रह धुन शीश.
मधुर-मधुर धुन गुनगुना, बनें सहायक ईश..
********************   
Acharya Sanjiv verma 'Salil'
http://divyanarmada.blogspot.com
http://hindihindi.in

6 टिप्‍पणियां:

  1. deepti gupta ✆ द्वारा yahoogroups.com ekavitaरविवार, फ़रवरी 12, 2012 3:29:00 pm

    deepti gupta ✆ द्वारा yahoogroups.com ekavita

    आदरणीय कविवर,
    फिर से एक प्रश्न है कि आप यमक के दोहों में अक्षर - विच्छेद क्यों करते हैं ? जैसे आपने लिखा है :
    स-मर , समर
    अ-मय, स-मय, कु-समय, सु-समय
    दी-वट, दीवट
    क्योंकि यदि भिन्न अर्थ का संकेत करने के लिए, अक्षरों को इस तरह से पृथक करना पड़ा तो ये ' दोहा यमक ' नहीं माने जाएगें ! हमने तो जो पढा और पढाया है आज तक - वह ये है कि जब एक ही शब्द की आवृति दो बार हो लेकिन अर्थ अलग - अलग हो, तो उस शब्द में यमक अलंकार होता है ! शब्द को ज़रा सी भी तोड़ा नहीं जाता ! जैसे; 'यमक' का बड़ा ही प्रसिध्द उदाहरण है -

    कनक कनक ते सौ गुनी मादकता अधिकाय
    वा खाए बौराए जग, या पाए बौराए
    कनक (सोने) में कनक (धतूरा) से सौगुना नशा होता है ! क्योंकि 'धतूरे' (वा) को तो लोग खाकर बौराते हैं; लेकिन 'सोने' (या) को तो पाकर ही बौरा जाते है !
    अब यहाँ पर ' कनक ' की दो भिन्न अर्थों के साथ, दो बार आवृत्ति हुई है ; लेकिन 'कनक' शब्द को तोड़ा नहीं गया है,

    ऐसे ही, एक और उदाहरण है - ' वे चार बेर खाने वाली, अब दो बेर खाती हैं '

    मतलब = कि जो पहले सम्पन्नता में जीती हुई चार बार खाना खाती थी - अब कंगाली के चलते केवल दो बेर (फल) खाती हैं !

    आप शब्दों को तोड कर अर्थ द्योतित करने की प्रक्रिया पर यमक का कोई नया नियम बताएगें तो हम आभारी होएंगें ! क्योंकि थोड़ा बहुत 'पिंगल शास्त्र' (छंद-अलंकार - रचयिता पिंगल मुनि) हमने भी पढ़ा है - उसके अनुसार हमने ऐसा यमक कही नहीं देखा ! सिर्फ इसलिए पूछ रहे हैं !

    सादर,
    जिज्ञासु ,
    दीप्ति

    जवाब देंहटाएं
  2. आत्मीय दीप्ति जी!
    वन्दे मातरम.
    हर शास्त्र में समय के साथ कुछ नया जुड़ता है. अलंकार शास्त्र के नियम समय के साथ क्यों न बदले?
    शब्दों को पृथक करने का उद्देश्य सिर्फ यह है कि कम हिंदी जाननेवाले भी उनके अभीष्ट अर्थ ग्रहण कर सकें. विराम चिन्हों का प्रयोग न भी हो तो भी अभीष्ट अर्थ विद्वान ग्रहण कर लेंगे किन्तु हिंदी कम जाननेवाले कठिनाई अनुभव कर सकते हैं.
    किसी अलंकार के जो प्रकार पिंगल शास्त्र में हैं उनकी संख्या बढ़ सकती है. भाषा और शब्दों के प्रयोग में दिन-ब-दिन परिवर्तन हो रहे हैं. शब्दों को ऐसे विशेषार्थ में प्रयोग किया जा सकता है जो पूर्व में न हुआ हो तथा इसके सर्वथा विपरीत जिन अर्थों में पूर्व में प्रयुक्त हुए हों अब न हो रहे हों.
    यमक के ये दोहे कुछ नये प्रयोगों के साथ कहे गये हैं.
    हिंदी की अभिव्यक्ति क्षमता पर उठाये जाते प्रश्नों के सन्दर्भ में शब्दों के भिन्नार्थक प्रयोगों को सामने लाते इन दोहों को यमक के दोहे कहा जाए या नहीं इस पर मतभेद हो सकते हैं.
    अपने बहुत अच्छा सवाल किया है. अन्य विद्वद्ज्जनों के मत की प्रतीक्षा है. आप जिअसी विदुषी ने इन दोहों पर ध्यान दिया, मेरा सृजन सफल हुआ. आपका आभार.

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  3. deepti gupta ✆ द्वारा yahoogroups.com ekavitaरविवार, फ़रवरी 12, 2012 4:01:00 pm

    deepti gupta ✆ द्वारा yahoogroups.com ekavita

    आपकी बात और सुझाव सही हैं कविवर ! धन्यवाद ......!
    ये परिवर्तन और प्रयोग आपने जिस पाठक वर्ग को ध्यान में रख कर किए हैं - वह वर्ग निश्चित ही भाग्यशाली है ! आपकी बात हमें बहुत जंची !
    हम तो वर्ग विहीन श्रेणी में लगते हैं - जिनका कोई अस्तित्व ही नहीं ..
    आभार सहित,
    दीप्ति

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  4. माननीया
    आप वर्गविहीन नहीं, अपने आप में वर्ग विशेष हैं, जिनसे हम जैसे अल्पज्ञ अपनी जिज्ञासा शांत करते हैं.

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  5. deepti gupta ✆ drdeepti25@yahoo.co.in द्वारा yahoogroups.com ekavita

    अरे रे रे, क्षमा कीजिए, सलिल जी ! हमें इतना भी ऊंचा मत उठाइए कि हमारा संतुलन बिगड जाए और ऊपर से सीधे हम 'तलातल' में चले जाएँ !
    इस ज्ञानवर्द्धन वार्ता को यही विराम देते हुए ,
    सादर,
    दी

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  6. दोहा सलिला:

    गले मिले दोहा यमक

    संजीव 'सलिल'
    *
    ..
    *
    दी! वट के नीचे चलें, भू गोबर से लीप.
    तम हर जग उजियारने, दीवट-बालें दीप.. --- वाह वाह क्या बात है!..
    *
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