दोहा मुक्तिका
यादों की खिड़की खुली...
संजीव 'सलिल'
*
यादों की खिड़की खुली, पा पाँखुरी-गुलाब.
हूँ तो मैं खोले हुए, पढ़ता नहीं किताब..
गिनती की सांसें मिलीं, रखी तनिक हिसाब.
किसे पाता कहना पड़े, कब अलविदा जनाब..
हम दकियानूसी हुए, पिया नारियल-डाब.
प्रगतिशील पी कोल्डड्रिंक, करते गला ख़राब..
किसने लब से छू दिया पानी हुआ शराब.
मैंने थामा हाथ तो, टूट गया झट ख्वाब..
सच्चाई छिपती नहीं, ओढ़ें लाख नकाब.
उम्र न छिपती बालभर, मलकर 'सलिल' खिजाब..
नेह निनादित नर्मदा, नित हुलसित पंजाब.
'सलिल'-प्रीत गोदावरी, साबरमती चनाब..
पैर जमीं पर जमकर, देख गगन की आब.
रहें निगाहें लक्ष्य पर, बन जा 'सलिल' उकाब..
Acharya Sanjiv verma 'Salil'
http://divyanarmada.blogspot.com
http://hindihindi.in
आदरणीय कविवर,
जवाब देंहटाएंसुन्दर और अर्थपूर्ण दोहों के लिए साधुवाद !
सादर,
दीप्ति
sn Sharma ✆ ahutee@gmail.com yahoogroups.com
जवाब देंहटाएं१९ नवम्बर
आ० आचार्य जी ,
अति सुन्दर गीतिका का रसास्वादन कराने के लिये साधुवाद |
विशेषकर यह मुक्तिका बहुत भायी |
" पैर जमीं पर जमाकर , देख गगन की आब. ( आपकी पंक्ति में जमकर के स्थान पर जमाकर उचित लगा )
रहें निगाहें लक्ष्य पर, बन जा 'सलिल' उकाब.."
कमल
Sitaram Chandawarkar ✆ chandawarkarsm@gmail.com yahoogroups.com
जवाब देंहटाएं१९ नवम्बर
आचार्य सलिल जी,
हमेशा की तरह अति सुन्दर! बधाई!
"किसने लब से छुआ पानी हुआ शराब" से एक किस्सा याद आया। लॉर्ड बाय्रन छुटपन से कविता लिखते थे। एक बार कुछ कवियों को ईसा मसीह के एक चमत्कार पर कविता लिखने को कहा गया। वह चमत्कार ऐसा था कि ईसा जब बालक ही थे, उन के घर कुछ त्योहार था और मेहमानों को वाइन बांटनी थी। ग़रिब होने कारण उन के घर में वाइन नहीं थी। तब उन्हों ने घडे में देखा और अन्दर के पानी वाइन बन गया।
सब कवि लिखते रहे किन्तु बाय्रन ने लिखना शुरु ही नहीं किया था। जब स्पर्धा का समय खत्म होने को था तब उन्होंने केवल एक पंक्ति लिखी
"Water saw its Master and blushed"
सस्नेह
सीताराम चंदावरकर
"Water saw its Master and blushed".....
जवाब देंहटाएंgreat and beautiful expression by Byron !
आ०सलिल जी
जवाब देंहटाएंउपदेशात्मक दोहे मुक्तिका अति सुन्दर लगे, बधाई। निम्न शब्दों को पुनः परख लें।
गिनती की सांसें मिलीं, रखी तनिक हिसाब.
किसे पाता कहना पड़े, कब अलविदा जनाब..
सन्तोष कुमार सिंह
--- On Sun, 20/11/11
shriprakash shukla ✆ wgcdrsps@gmail.com yahoogroups.com
जवाब देंहटाएं८:२२ पूर्वाह्न
आदरणीय सीताराम जी,
प्रणाम
प्रतिक्रियायों में आपका नाम देखते ही एक हर्ष की लहर दौड़ जाती है कि अब कुछ ना कुछ अद्भुत पढने को मिलेगा और कभी भी निराश नहीं होना पड़ा | ईश्वर से यही प्रार्थना करूंगा कि आपको स्वस्थ रखे और अधिक से अधिक समय दे जिस से आप हम सब को ज्ञान की बातें बता सकें
सादर
श्रीप्रकाश शुक्ल
दीप्ति जी!
जवाब देंहटाएंआपकी गुणग्राहकता को नमन.
सीताराम की कृपा मिले तो और क्या चाहिए. बायरन की अभिव्यक्ति को नतशिर प्रणाम. आपका आभार शत-शत.
बंधु टंकण त्रुटि की ओर ध्यान आकर्षित करने हेतु धन्यवाद. मूलतः निम्न है:
गिनती की साँसें मिलीं, रखिए तनिक हिसाब.
किसे पता कहना पड़े, कब अलविदा जनाब
सलिल जी
जवाब देंहटाएंआपकी लेखन कला को मेरा नमन.
पैर जमीं पर जमकर, देख गगन की आब.
रहें निगाहें लक्ष्य पर, बन जा 'सलिल' उकाब..
क्या कहें !!
सौ सौ उठते प्रश्न है, हर दोहे पर आज
कैसे सीखूं यह विधा, कुछ तो कहिये आप