शुक्रवार, 30 सितंबर 2011

नवगीत : तुम मुस्कायीं जिस पल.... -- संजीव 'सलिल'

नवगीत 

तुम मुस्कायीं  जिस पल...

संजीव 'सलिल'

 *
तुम मुस्कायीं जिस पल
   उस पल उत्सव का मौसम.....
*
लगे दिहाड़ी पर हम
जैसे कितने ही मजदूर
गीत रच रहे मिलन-विरह के
आँखें रहते सूर
नयन नयन से मिले झुके
उठ मिले मिट गया गम
तुम शर्मायीं जिस पल
  उस पल उत्सव का मौसम.....
*
देखे फिर दिखलाये
एक दूजे को सपन सलोने
बिना तुम्हारे छुए लग रहे
हर पकवान अलोने
स्वेद-सिंधु में नहा लगी
हर नेह-नर्मदा नम
तुम अकुलायीं जिस पल
  उस पल उत्सव का मौसम.....
*
कंडे थाप हाथ गुबरीले
सुना रहे थे फगुआ
नयन नशीले दीपित
कहते दीवाली अगुआ
गाल गुलाबी 'वैलेंटाइन
डे' की नव सरगम
तुम भरमायीं  जिस पल
  उस पल उत्सव का मौसम.....
****

4 टिप्‍पणियां:

  1. Dr Varsha Singh …

    लगे दिहाड़ी पर हम
    जैसे कितने ही मजदूर
    गीत रच रहे मिलन-विरह के
    आँखें रहते सूर
    नयन नयन से मिले झुके
    उठ मिले मिट गया गम
    तुम शर्माईं जिस पल
    उस पल उत्सव का मौसम


    सुन्दर शब्द संयोजन ...बेहद कोमल सुंदर रचना और सुंदर भाव !

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  2. आचार्य जी इस बार तृषित मन को बहुत सुकून पहुंचाया आपके इस नवगीत ने। शेष बातें फोन पर। नमन।

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  3. लोक जीवन से जुड़ा हुआ और लोक शब्दों
    " कंडे थाप हाथ गुबरीले
    सुना रहे थे फगुआ "
    की सिद्धमय कारीगरी के साथ बुना हुआ मनभावन नवगीत के लिए संजीव सलिल जी को वधाई।

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