रविवार, 28 अगस्त 2011

एक गीत: जीवन को महकाता चल -- उदयभानु तिवारी 'मधुकर'


  • एक गीत:
    जीवन को महकाता चल
    उदयभानु तिवारी 'मधुकर'
    *

  • जीवन को महकाता चल...
    *
    हँसता  चल हँसाता चल गुलशन के सुमन सजाता चल
    जग पर्वत के कंटक पथ पर अपनी धुन में गाता चल...

    चाहे आतप की दुपहर हो चाहे शीतल छाँव हो
    मंजिल तक है तुम्हें पहुँचना धीमे पड़ें न पाँव हो
    पग-पग पर अँगार दहकते डगर-डगर भटकाव हो
    दर्द न बाँटे जग में कोई रखो छिपाकर घाव हो

    क्रोध के कड़वे घूँट निगल मुस्कान अधर बिखराता चल...
    चाहे ग्रहण लगा हो सूरज सरसिज भी कुम्हलाया हो ;
    घोर अँधेरी रात का चाहे सूनापन भी छाया हो 
    असह वेदना ने आँखों में अश्रु-बिंदु छलकाया हो;
    दृढ संकल्प कभी ना डोले चाहे तन मुरझाया हो

    प्यार की गागर से बगिया में जीवन रस बरसाता चल...
    *
    घबरानामत कभी धार में यदि छूटे पतवार हो 
    साहस भुजा समेट भँवर में धीरज से उस पार हो
    नाव पुरानी इक दिन डूबे नश्वर यह संसार हो
    क्या जाने जग में कब होगा फिर दूजा अवतार हो

    निजकार्मों से इस धरती पर जीवन को महकाता चल..
    *

4 टिप्‍पणियां:

  1. प्यार की गागर से बगिया में जीवन रस बरसाता चल...

    सलिल जी, मधुकर जी का बहुत सुन्दर गीत पढ़वाया आपने| आभार|

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  2. कल 06/09/2011 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
    धन्यवाद!

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  3. बहुत ही अच्‍छी प्रस्‍तुति ।

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  4. बहुत सुन्दर गीत...
    मधुकर जी को सादर बधाई आपका सादर आभार...

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