गीत:
रेडिओ नहीं है यंत्र मात्र संजीव 'सलिल'
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रेडिओ नहीं है यंत्र मात्र
यह जनगण-मन की वाणी है...
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यह सुख-दुःख का साथी सच्चा.
चाहे हर वृद्ध, युवा, बच्चा.
जो इसे सुन रहे, गुनते भी-
तुम समझो इन्हें नहीं कच्चा.
चेतना भरे सबके मन में
यह यंत्र नहीं पाषाणी है...
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इसमें गीतों की खान भरी.
नाटक-प्रहसन से हँसी झरी.
कर ताक-झाँक दादी पूछें-
'जो गाती इसमें कहाँ परी?'
प्रातः गूँजे आरती-भजन
सुर-राग सभी कल्याणी है..
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कृषि, शिक्षा, स्वास्थ्य सिखाता है.
उत्तम बातें बतलाता है.
क्या-कहाँ हो रहा सही-गलत?
दर्पण बन सच दिखलाता है.
पीड़ितों हेतु रहता तत्पर
दुःख-मुक्ति कराता त्राणी है...
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Acharya Sanjiv Salil
http://divyanarmada.blogspot.com
Sangya Tandon ✆ द्वारा yahoo.com
जवाब देंहटाएंजीजाजी!
आप सचमुच महान हो, सबके आचार्य हो।
तात्कालिक कविता निर्माण करने में आपका मुकाबला देश में कोई नहीं कर सकता।
क्या अंदाज़ है आपका तारीफ करने का, आपके फैन्स की संख्या कितनी है...
उसमें एक और जोड़ लीजियेगा, अपनी इस छोटी सी साली का नाम।
कुण्डली:
जवाब देंहटाएंसाली जी गुणवान हैं, जीजा जी हैं फैन..
साली जी रस-खान हैं, जीजा सिर्फ कुनैन..
जीजा सिर्फ कुनैन, फ़िदा हैं जीजी जी पर.
सुबह-शाम करते सलाम उनको जी-जी कर..
बीबी जी पायी हैं मधु-रस की प्याली जी.
बोनस में स्नेह लुटाती हैं साली जी.
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