शनिवार, 6 अगस्त 2011

लघुकथा: स्वजन तंत्र -- संजीव 'सलिल'

लघुकथा:                                                          
स्वजन तंत्र

संजीव 'सलिल'
*
राजनीति विज्ञान के शिक्षक ने जनतंत्र की परिभाषा तथा विशेषताएँ बताने के बाद भारत को विश्व का सबसे बड़ा जनतंत्र बताया तो एक छात्र से रहा नहीं गया. उसने अपनी असहमति दर्ज करते हुए कहा:

- ' गुरु जी! भारत में जनतंत्र नहीं स्वजन तंत्र है.'

-' किताब में एसे किसी तंत्र का नाम नहीं है.' - गुरु जी बोले. ' कैसे होगा? यह हमारी अपनी खोज है और भारत में की गयी खोज को किताबों में इतनी जल्दी जगह मिल ही नहीं सकती. यह हमारे शिक्षा के पाठ्य क्रम में भी नहीं है लेकिन हमारी ज़िन्दगी के पाठ्य क्रम का पहला अध्याय यही है जिसे पढ़े बिना आगे का कोई पाठ नहीं पढ़ा जा सकता.' छात्र ने कहा.

-' यह स्वजन तंत्र होता क्या है? यह तो बताओ.' -सहपाठियों ने पूछा.

-' स्वजन तंत्र एसा तंत्र है जहाँ चंद चमचे इकट्ठे होकर कुर्सी पर लदे नेता के हर सही-ग़लत फैसले को ठीक बताने के साथ-साथ उसके वंशजों को कुर्सी का वारिस बताने और बनाने की होड़ में जी-जान लगा देते हैं. जहाँ नेता अपने चमचों को वफादारी का ईनाम और सुख-सुविधा देने के लिए विशेष प्राधिकरणों का गठन कर भारी धन राशि, कार्यालय, वाहन आदि उपलब्ध कराते हैं जिनका वेतन, भत्ता, स्थापना व्यय तथा भ्रष्टाचार का बोझ झेलने के लिए आम आदमी को कानून की आड़ में मजबूर कर दिया जाता है. इन प्राधिकरणों में मनोनीत किए गए चमचों को आम आदमी के दुःख-दर्द से कोई सरोकार नहीं होता पर वे जन प्रतिनिधि कहलाते हैं. वे हर काम का ऊंचे से ऊंचा दाम वसूलना अपना हक मानते हैं और प्रशासनिक अधिकारी उन्हें यह सब कराने के उपाय बताते हैं.'

-' लेकिन यह तो बहुत बड़ी परिभाषा है, याद कैसे रहेगी?' छात्र नेता के चमचे ने परेशानी बताई.

-' चिंता मत कर. सिर्फ़ इतना याद रख जहाँ नेता अपने स्वजनों और स्वजन अपने नेता का हित साधन उचित-अनुचित का विचार किए बिना करते हैं और जनमत, जनहित, देशहित जैसी भ्रामक बातों की परवाह नहीं करते वही स्वजन तंत्र है लेकिन किताबों में इसे जनतंत्र लिखकर आम आदमी को ठगा जाता है ताकि वह बदलाव की मांग न करे.'

-गुरु जी अवाक् होकर राजनीति के व्यावहारिक स्वरुप का ज्ञान पाकर धन्य हो रहे थे.
Acharya Sanjiv Salil

http://divyanarmada.blogspot.com

4 टिप्‍पणियां:

  1. Dr.M.C. Gupta ✆ द्वारा yahoogroups.com eChintanशनिवार, अगस्त 06, 2011 12:09:00 pm

    बहुत सुंदर और सामयिक है, सलिल जी.

    डा० महेश चंद्र गुप्त ’ख़लिश’

    Dr. M C Gupta MD (Medicine), LL.M., Advocate

    http://groups.yahoo.com/group/Hindienglishpoetry

    ,

    www.writing.com/authors/mcgupta44

    http://in.groups.yahoo.com/group/medico-legal-queries
    medico-legal-queries@yahoogroups.co.in

    जवाब देंहटाएं
  2. आज के कटु वास्तविकता की प्रतीक लघुकथा
    के लिए आप बधाई के पात्र हैं |
    इस विधामें भी आप ने कमाल किया,
    जैसा कविता के क्षेत्र में करते रहते हैं ||

    Achal Verma

    जवाब देंहटाएं
  3. sn Sharma ✆ द्वारा yahoogroups.com eChintanशनिवार, अगस्त 06, 2011 12:10:00 pm

    आ० आचार्य जी,
    आज के जनतंत्र के वास्तविक परिभाषा की है आपने | साधुवाद |
    सामयिक एवं विचारणीय लघुकथा | हमारे जन-तंत्र के कई पर्याय हैं -स्वार्थ-तंत्र, स्वहित-तंत्र ,भ्रष्टाचार तंत्र ,घोटाला तंत्र ,
    और जैसा आप ने कहा स्वजन तंत्र भी |
    सादर
    कमल

    जवाब देंहटाएं
  4. उत्साहवर्धन हेतु धन्यवाद.

    जवाब देंहटाएं