सोमवार, 1 अगस्त 2011

गीत: प्राण बूँद को तरसें ---- संजीव 'सलिल'


गीत:                                                                               
प्राण बूँद को तरसें
संजीव 'सलिल'
*
प्राण बूँद को तरसें,
दाता! प्राण बूँद को तरसें...
*
कृपासिंधु है याद न हमको, तुम जग-जीवनदाता.
अहं वहम का पाले समझें,हम खुद को  ही त्राता..
कंकर में शंकर न देखते, आँख मूँद बैठे है-
स्वहित साध्य हो गया, सर्वहित किंचित नहीं सुहाता..
तृषा न होती तृप्त थक रहे, स्वप्न न क्यों कुछ सरसें?
प्राण बूँद को तरसें,
दाता! प्राण बूँद को तरसें...
*
प्रश्न पूछते लेकिन उत्तर, कोई नहीं मिल पाता.
जिस पथ से बढ़ते, वह पग को और अधिक भटकाता..
मरुथल की मृगतृष्णा में फँस, आकुल-व्याकुल लुंठित-
सिर्फ आज में जीते, कल का ज्ञात न कल से नाता..
आशा बादल उमड़ें-घुमड़ें, गरजें मगर न बरसें...
प्राण बूँद को तरसें,
दाता! प्राण बूँद को तरसें...
*
माया महाठगिनी सब जानें, मोह न लेकिन जाता.
ढाई आखर को दिमाग, सुनता पर समझ न पाता..
दिल की दिल में ही रह जाती, हिल जाता आधार-
मिली न चादर ज्यों की त्यों, बोलो कैसे रख गाता?
चरखा साँसें आस वसन बुन, चुकीं न पल भर हरसें.
प्राण बूँद को तरसें,
दाता! प्राण बूँद को तरसें...
*

4 टिप्‍पणियां:

  1. Dr.M.C. Gupta ✆ द्वारा yahoogroups.com ekavitaसोमवार, अगस्त 01, 2011 5:13:00 pm

    सलिल जी,

    मन से आवाज़ आ रही है--


    अगर तुम्हें आचार्य कहें हम पर आशीषें बरसें
    ऐसी रचना पढ़ने को हम विमुख हुए भी तरसें

    कितना मनोहारी लिखा है आपने--

    माया महाठगिनी सब जानें, मोह न लेकिन जाता.
    ढाई आखर को दिमाग, सुनता पर समझ न पाता..
    दिल की दिल में ही रह जाती, हिल जाता आधार-
    मिली न चादर ज्यों की त्यों, बोलो कैसे रख गाता?
    चरखा साँसें आस वसन बुन, चुकीं न पल भर हरसें.
    प्राण बूँद को तरसें,
    दाता! प्राण बूँद को तरसें...


    डा० महेश चंद्र गुप्त ’ख़लिश’

    http://groups.yahoo.com/group/Hindienglishpoetry

    www.writing.com/authors/mcgupta44

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  2. sn Sharma ✆ द्वारा yahoogroups.com ekavitaसोमवार, अगस्त 01, 2011 5:14:00 pm

    आ० आचार्य जी ,
    कितने सशक्त, सजीव और सहीं संकेत हैं आपकीं इस रचना में ?
    निस्तब्ध हूँ | लेखनी को नमन |
    सादर
    कमल

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  3. अनुपम कृति |

    Achal Verma

    --- On Mon, 8/1/11

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  4. shriprakash shukla ✆ द्वारा yahoogroups.com ekavitaसोमवार, अगस्त 01, 2011 9:16:00 pm

    आदरणीय आचार्य जी,
    अति सुन्दर रचना | आपकी रचनाएं एक प्रेरणा स्रोत होतीं हैं और सृजन कार्य में सहायक | आशा है आप स्वस्थ और सानंद होंगे |
    सादर
    श्रीप्रकाश शुक्ल

    Web:http://bikhreswar.blogspot.com/

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