सोमवार, 22 अगस्त 2011

श्री कृष्ण जन्माष्टमी पर दोहा सलिला- बजा कर्म की बाँसुरी: --संजीव 'सलिल'

श्री कृष्ण जन्माष्टमी पर दोहा सलिला-                                             
बजा कर्म की बाँसुरी:
संजीव 'सलिल'
*
बजा कर्म की बाँसुरी, रचा आस सँग रास.
मर्म धर्म का समझ ले, 'सलिल' मिटे संत्रास..
*
मीरां सी दीवानगी, राधा जैसी प्रीत.
द्रुपदसुता सी नेह की, थाती परम पुनीत..
*
चार पोर की बाँसुरी, तन-चारों पुरुषार्थ.
फूँक जोर से साँस री, दस दिश हो परमार्थ..
*
श्वास-बाँसुरी पर गुँजा, लास-हास के गीत.
रास- काम निशाकाम कर, पाल ईश से प्रीत..
*
प्रभु अर्पित हो पार्थ सम, बनें आप सब काम.
त्याग वासना-कामना, भुला कर्म-परिणाम..
*
श्वास किशन, है राधिका आस, जिंदगी रास.
प्यास मिटा नवनीत दे, जब हो सतत प्रयास..
*
मन मीरां तन राधिका, नटनागर संकल्प.
पार्थ प्रबल पुरुषार्थ का, यश गाते शत कल्प..
*
मनमोहन मुरली बजा, छेड़ें मधुमय तान.
कन्दुक क्रीड़ा कर किया, वश में कालिय नाग..
*
दुर्योधन से दिन कठिन, दु:शासन सी रात.
संध्या है धृतराष्ट्र सी, गांधारी सा प्रात..
*
करें मित्रता कृष्ण सी, श्रीदामा सा स्नेह.
अंतर्मन से एक हों, बिसरा तन-धन-गेह..
*
आत्म-राधिका ध्यान में, कृष्णचन्द्र के लीन.
किंचित ओझल हों किशन, तड़पे जल बिन मीन..
*
बाल कृष्ण को देखते, सूरदास बिन नैन.
नैनावाले आँधरे, तड़प रहे दिन-रैन..
*
श्री की सार्थकता तभी, साथ रहें श्रीनाथ.
नाथ रहित श्री मोह मन, करती आत्म-अनाथ..
*
'सलिल' न सम्यक आचरण, जब करता इंसान.
नियति महाभारत रचे, जग बनता शमशान..
*
शांति नगर हो विश्व यदि, संजय-विदुर प्रधान.
सेवक पांडवगण रहें, रक्षक भीष्म प्रधान..
*
सच से आँखें मूँद लीं, आया निकट विनाश.
नाश न होता देखती, गांधारी सच काश..
*
श्रवण, भीष्म, श्री राम की, पितृ-भक्ति अनमोल.
तीन लोक की सम्पदा, सके न किंचित तोल..
*
दिशा बोध दायित्व जब, लगा द्रोण के हाथ.
एकलव्य-राधेय का, झुका जीतकर माथ..
*
नेत्रहीन धृतराष्ट्र को, दिशा दिखाये कौन?
बांधे पट्टी आँख पर, गांधारी यदि मौन..
*
भृष्टाचारी कंस को, अन्ना कृष्ण समान.
हुई सोनिया पूतना, दिल्ली कुरु-मैदान..
*
Acharya Sanjiv Salil

http://divyanarmada.blogspot.com

6 टिप्‍पणियां:

  1. आदरणीय कविवर,

    आपके कृष्ण कन्हैया से सलोने दोहे बड़े ही लाजवाब बन पड़े हैं. वैसे तो सभी बहुत उत्तम हैं लेकिन जो विशेष मन भाए -

    मीरां सी दीवानगी, राधा जैसी प्रीत. (भावपूर्ण)

    द्रुपदसुता सी नेह की, थाती परम पुनीत..

    चार पोर की बाँसुरी, तन-चारों पुरुषार्थ. (ज्ञानपूर्ण)

    फूँक जोर से साँस री, दस दिश हो परमार्थ..
    करें मित्रता कृष्ण सी, श्रीदामा सा स्नेह. (नीतिपूर्ण)

    अंतर्मन से एक हों, बिसरा तन-धन-गेह..

    श्रवण, भीष्म, श्री राम की, पितृ-भक्ति अनमोल. (अर्थपूर्ण)
    तीन लोक की सम्पदा, सके न किंचित तोल..

    भृष्टाचारी कंस को, अन्ना कृष्ण समान. (संघर्षपूर्ण)

    हुई सोनिया पूतना, दिल्ली कुरु-मैदान..
    सादर,
    दीप्ति

    *

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  2. अनूठे दोहे , परिचित भाव |
    इन दोहों की माला में उत्तम भाव पिरोये
    रख दी जैसे आपने अमृत थाल संजोये
    Achal Verma

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  3. आदरणीय सलिल जी
    बहुत ही सारगर्भित दोहे हैं, जितनी तरीफ की जाए कम है।
    हार्दिक बधाई स्वीकारें।
    सन्तोष कुमार सिंह

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  4. आदरणीय आचार्य जी

    शुरू से लेकर अंत तक लाजबाव दोहे ,पढ़ कर मन अति प्रसन्न हो गया
    नमन
    संतोष भाऊवाला

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  5. sn Sharma ✆ द्वारा yahoogroups.com ekavitaशुक्रवार, अगस्त 26, 2011 12:45:00 am

    आ० आचार्य जी ,
    सामयिक और नीति-परक दोहों को पढ़ कर मन मुग्ध हो गया |
    विशेष -
    चार पोर की बाँसुरी, तन-चारों पुरुषार्थ.
    फूँक जोर से साँस री, दस दिश हो परमार्थ..

    श्वास-बाँसुरी पर गुँजा, लास-हास के गीत.
    रास- काम निष्काम कर, पाल ईश से प्रीत..

    करें मित्रता कृष्ण सी, श्रीदामा सा नेह .
    अंतर्मन से एक हों, बिसरा तन-धन-गेह..

    सब दोहों में मति प्रखर बने एक से एक
    भाषा अति मनभावनी कथन के अर्थ अनेक
    सादर
    कमल

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  6. मीरां सी दीवानगी, राधा जैसी प्रीत.
    द्रुपदसुता सी नेह की, थाती परम पुनीत..... बहुत सुन्दर!
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    श्वास किशन, है राधिका आस, जिंदगी रास..... वाह !
    प्यास मिटा नवनीत दे, जब हो सतत प्रयास..
    *
    मन मीरां तन राधिका, नटनागर संकल्प.
    पार्थ प्रबल पुरुषार्थ का, यश गाते शत कल्प........ वाह!
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    दुर्योधन से दिन कठिन, दु:शासन सी रात.
    संध्या है धृतराष्ट्र सी, गांधारी सा प्रात.. ... ओह! बहुत ही नवीन सा बिम्ब!
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    बाल कृष्ण को देखते, सूरदास बिन नैन.
    नैनावाले आँधरे, तड़प रहे दिन-रैन..... वाह!
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    श्री की सार्थकता तभी, साथ रहें श्रीनाथ.
    नाथ रहित श्री मोह मन, करती आत्म-अनाथ..... इसपे एक लम्बी प्रार्थना कि पंक्तियाँ याद आ गईं: संसार लक्ष्मी कि अहो! दिन रात खोज किया करे, लक्ष्मी तुम्हें निज खोजती कर में कमल-दीया धरे...
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    श्रवण, भीष्म, श्री राम की, पितृ-भक्ति अनमोल.
    तीन लोक की सम्पदा, सके न किंचित तोल...... अति सुन्दर!
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    दिशा बोध दायित्व जब, लगा द्रोण के हाथ.
    एकलव्य-राधेय का, झुका जीतकर माथ.............ये अनुपम !
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    नेत्रहीन धृतराष्ट्र को, दिशा दिखाये कौन?
    बांधे पट्टी आँख पर, गांधारी यदि मौन...... ये भी बहुत ही सुन्दर!
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    सादर शार्दुला

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