सोमवार, 8 अगस्त 2011

घनाक्षरी सलिला: सावनी घनाक्षरी संजीव 'सलिल'

घनाक्षरी सलिला:                                                                        
सावनी घनाक्षरी
संजीव 'सलिल'
*
सावन में झूम-झूम, डालों से लूम-लूम, झूला झूल दुःख भूल, हँसिए हँसाइये.
एक दूसरे की बाँह, गहें बँधें रहे चाह, एक दूसरे को चाह, कजरी सुनाइये..
दिल में रहे न दाह, तन्नक पले न डाह, मन में भरे उछाह, पेंग को बढ़ाइए.
राखी की है साखी यही, पले प्रेम-पाखी यहीं, भाई-भगिनी का नाता, जन्म भर निभाइए..
*
बागी थे हों अनुरागी, विरागी थे हों सुहागी, कोई भी न हो अभागी, दैव से मनाइए.
सभी के माथे हो टीका, किसी का न पर्व फीका, बहनों का नेह नीका, राखी-गीत गाइए..
कलाई रहे न सूनी, राखी बाँध शोभा दूनी, आरती की ज्वाल धूनी, अशुभ मिटाइए.
मीठा खाएँ मीठा बोलें, जीवन में रस घोलें, बहना के पाँव छूलें, शुभाशीष पाइए..
*
बंधन न रास आये, बँधना न मन भाये, स्वतंत्रता ही सुहाये, सहज स्वभाव है.
निर्बंध अगर रहें, मर्याद को न गहें, कोई किसी को न सहें, चैन का अभाव है..
मना राखी नेह पर्व, करिए नातों पे गर्व, निभायें संबंध सर्व, नेह का निभाव है.
बंधन जो प्रेम का हो, कुशल का क्षेम का हो, धरम का नेम हो, 'सलिल' सत्प्रभाव है..
*
संकट में लाज थी, गिरी सिर पे गाज थी, शत्रु-दृष्टि बाज थी, नैया कैसे पार हो?
कर्मावती महारानी, पूजतीं माता भवानी, शत्रु है बली बहुत, देश की न हार हो..
राखी हुमायूँ को भेजी, बादशाह ने सहेजी, बहिन की पत राखी, नेह का करार हो.
शत्रु को खदेड़ दिया, बहिना को मान दिया, नेह का जलाया दिया, भेंट स्वीकार हो..
*
महाबली बलि को था, गर्व हुआ संपदा का, तीन लोक में नहीं है, मुझ सा कोई धनी.
मनमानी करूँ भी तो, रोक सकता न कोई, हूँ सुरेश से अधिक, शक्तिवान औ' गुनी..
महायज्ञ कर दिया, कीर्ति यश बल लिया, हरि को दे तीन पग, धरा मौन था गुनी.
सभी कुछ छिन गया, मुख न मलिन हुआ, हरि की शरण गया, सेवा व्रत  ले धुनी.

बाधा दनु-गुरु बने, विपद मेघ थे घने, एक नेत्र गँवा भगे, थी व्यथा अनसुनी.
रक्षा सूत्र बाँधे बलि, हरि से अभय मिली, हृदय की कली खिली, पटकथा यूँ बनी.
विप्र जब द्वार आये, राखी बांध मान पाये, शुभाशीष बरसाये, फिर न हो ठनाठनी.
कोई किसी से न लड़े, हाथ रहें मिले-जुड़े, साथ-साथ हों खड़े, राखी मने सावनी..
*
Acharya Sanjiv Salil

http://divyanarmada.blogspot.com

9 टिप्‍पणियां:

  1. आदरणीय मनहर घनाक्षरी विधान को घनाक्षरी में ही रचकर आपने इस विधा को और भी रोचक बनाया है, शेष घनाक्षरियां भी बहुत ही उच्च कोटि के भाव देती हैं | रक्षाबंधन त्यौहार, परंपरा, परस्पर स्नेह, इतिहास सब कुछ आपने समेट रखा है, बहुत बहुत बधाई आचार्य जी |

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  2. sir har taraf teri jalwa geet mujhe yad aane laga bahut badhi

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  3. गुरूदेव यहाँ आये, संग में ये छंद लाये, बड़े भाग हम पाये, गुरू जी प्रणाम है.

    राखी के अनेक रंग, बहिना सखी के संग, छिड़ गयी दिखो जंग, बहिनों के नाम है.

    स्नेह का प्रतीक राखी, विजय प्रतीक राखी, महिमा सभी नें जानी, नेक हुआ काम है.

    श्रावण की पूर्णिमा को, शची रानी नें भी बाँधी, जीते तब इन्द्रदेव, घोर जो संग्राम है.

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  4. aadarniy aacharya ji,

    bahut gyanyukt baat batai aapne. aap jab bhi aate hai (aksar hi aate hai), gyan ka khajana khol jate hai.

    anmol ghanakshariyan padhkar kar chit prasann ho gaya.

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  5. इन उच्चस्तरीय घनाक्षरी छंदों ने चार चाँद लगा दिए हैं आचार्य जी - साधुवाद स्वीकार करें !

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  6. आदरणीय आचार्य जी,

    वाह! नमन स्वीकारें!

    सादर शार्दुला

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  7. sn Sharma ✆ द्वारा yahoogroups.com ekavitaगुरुवार, अगस्त 11, 2011 8:52:00 am

    आ० आचार्य जी,
    रचना बड़ी प्रभावपूर्ण है |
    कट्टर से कट्टर दिल भी पसीज जाएँ / इतने पर भी न सोचें समझें मुँह बनाएँ /
    संस्कार व्यवहार भ्रातृ-प्रेम सब बिसराएँ / अवसर चूके फिर बाद में रोयें पछताएँ |

    आपकी यह रचना व्यापक उपयोग तथा प्रयोग की है | साधुवाद ~!
    सादर
    कमल

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  8. shriprakash shukla ✆ द्वारा yahoogroups.com ekavitaगुरुवार, अगस्त 11, 2011 8:52:00 am

    आदरणीय आचार्य जी,
    इस अद्भुत रचना के लिए अनेकानेक बधाईयाँ |
    सादर
    श्रीप्रकाश शुक्ल

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  9. सलिल जी के 'सलिल- घनाक्षरी ' की तो बात ही अलग है. अपूर्व और बेमिसाल,

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