मंगलवार, 3 मई 2011

मुक्तिका: हौसलों को ---- संजीव 'सलिल'

मुक्तिका:
हौसलों को
संजीव 'सलिल'
*
हौसलों को किला कर देखो.
अँगुलियों को छिला कर देखो..

ज़हर को कंठ में विहँस धारो.
कभी मुर्दे को जिला कर देखो..

आस के क्षेत्ररक्षकों को तुम
प्यास की गेंद झिला कर देखो..

साँस मटकी है मथानी कोशिश
लक्ष्य माखन को बिला कर देखो..

तभी हमदम 'सलिल' के होगे तुम
मैं को जब मूक शिला कर देखो..

*******************

3 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी आशुकविताओं का जवाब नहीं आचार्य जी.
    सादर
    मदन मोहन 'अरविन्द'

    जवाब देंहटाएं
  2. Ghanshyam Gupta ekavita

    विवरण दिखाएँ ७:१८ अपराह्न (6 मिनट पहले)



    संजीव जी,

    आस के क्षेत्ररक्षकों को तुम
    प्यास की गेंद झिला कर देखो

    यह पंक्तियां अच्छी लगीं। वैसे भी आपकी लेखनी का प्रसाद हमेशा ही रसमय होता है।

    - घनश्याम

    जवाब देंहटाएं
  3. रंजना सिंह -

    वाह...वाह...वाह...

    लाजवाब !!!

    बहुत ही सुन्दर !!!

    जवाब देंहटाएं