मंगलवार, 31 मई 2011

मुक्तिका: ज़रा सी जिद ने --संजीव 'सलिल'

मुक्तिका
ज़रा सी जिद ने
संजीव 'सलिल'
*
ज़रा सी जिद ने इस आँगन का बटवारा कराया है.
बना घर को मकां, मालिक को बंजारा कराया है..

नहीं अब मेघदूतों या कबूतर का ज़माना है.
कलम-कासिद को मोबाइल ने नाकारा कराया है..

न खूँटे से बँधे हैं, ना बँधेंगे, लाख हो कोशिश.
कलमकारों ने हर ज़ज्बे को आवारा कराया है..

छिपाकर अपनी गलती, गैर की पगड़ी उछालो रे. 
न तूती सच की सुन, झूठों का नक्कारा कराया है..

चढ़े जो देश की खातिर, विहँस फाँसी के तख्ते पर
समय ने उनके बलिदानों का जयकारा कराया है..

हुआ मधुमेह जबसे डॉक्टर ने लगाई बंदिश
मधुर मिष्ठान्न का भी स्वाद अब खारा कराया है..

सुबह उठकर महलवाले टपरियों को नमन करिए.
इन्हीं ने पसीना-माटी मिला गारा कराया है..

निरंतर सेठ, नेता, अफसरों ने देश को लूटा.
बढ़ा मँहगाई इस जनगण को बेचारा कराया है..

न जनगण और प्रतिनिधि में रहा विश्वास का नाता.
लड़ाया 'सलिल' आपस में, न निबटारा कराया है..

कटे जंगल, खुदे पर्वत, सरोवर पूर डाले हैं.
'सलिल' बिन तप रही धरती को अंगारा कराया है..
********

5 टिप्‍पणियां:

  1. नहीं अब मेघदूतों या कबूतर का ज़माना है.
    कलम-कासिद को मोबाइल ने नाकारा कराया है..

    क्या बात है आचार्य जी.....सलाम है आपके लिखने की क्षमता को...बहुत ही बढ़िया लिखा है आपने...

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  2. बेहतरीन कहन का नमूना है सभी शे'र , सभी शे'र खुबसूरत बन पड़े है , एक दो मिसरा पढ़ने में अटकाव जैसा लग रहा है, आचार्य जी से नम्र निवेदन है कि जरा मीटर को देखना चाहेंगे |

    वो मिसरे है ....

    हुआ मधुमेह जबसे डॉक्टर ने लगाई बंदिश

    इन्हीं ने पसीना-माटी मिला गारा कराया है.

    आचार्य जी, बेहतरीन मुक्तिका पर बधाई स्वीकार करे |

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  3. Yograj Prabhakar

    //कटे जंगल, खुदे पर्वत, सरोवर पूर डाले हैं.
    'सलिल' बिन तप रही धरती को अंगारा कराया है..//



    इस शेअर में बहुत दर्द है - बधाई स्वीकार करें आचार्य जी !

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  4. आदरणीय आचार्यश्री संजीव वर्मा सलिल जी

    प्रणाम !

    आपकी एक एक मुक्तिका तीन दिनों से देख रहा हूं , और आपकी ऊर्जा को नमन कर रहा हूं ।


    कटे जंगल, खुदे पर्वत, सरोवर पूर डाले हैं

    'सलिल' बिन तप रही धरती को अंगारा कराया है…


    किया क्या जाए अपने पांव पर कुल्हाड़ी मारने वाली इस नासमझ प्रजाति का ?!:(


    पूरी रचना के लिए साधुवाद !

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  5. न खूँटे से बँधे हैं, ना बँधेंगे, लाख हो कोशिश.
    कलमकारों ने हर ज़ज्बे को आवारा कराया है.
    वाह वाह वाह!!!! अद्भुत
    चढ़े जो देश की खातिर, विहँस फाँसी के तख्ते पर
    समय ने उनके बलिदानों का जयकारा कराया है..
    दिल से निकली आवाज़..एकदम सच्चा शेर
    बहुत बहुत बधाई\

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