सोमवार, 30 मई 2011

घनाक्षरी / मनहरण कवित्त ... झटपट करिए --संजीव 'सलिल'

घनाक्षरी / मनहरण कवित्त
... झटपट करिए
संजीव 'सलिल'
*
लक्ष्य जो भी वरना हो, धाम जहाँ चलना हो,
काम जो भी करना हो, झटपट करिए.
तोड़ना नियम नहीं, छोड़ना शरम नहीं,
मोड़ना धरम नहीं, सच पर चलिए.
आम आदमी हैं आप, सोच मत चुप रहें,
खास बन आगे बढ़, देशभक्त बनिए-
गलत जो होता दिखे, उसका विरोध करें,
'सलिल' न आँख मूँद, चुपचाप सहिये.
*
छंद विधान: वर्णिक छंद, आठ चरण,
८-८-८-७ पर यति, चरणान्त लघु-गुरु.
*********
Acharya Sanjiv Salil

http://divyanarmada.blogspot.com/

3 टिप्‍पणियां:

  1. Encyclopedia of Sikh Literature
    Guru Shabd Ratnakar
    Mahaan-Kosh
    By Bhai Kahan Singh Nabha ji.
    Excerpts from page no. 1577-1579



    (अ) घनाक्षरी : यह छंद "कबित्त" का ही एक रूप है, लक्षण - प्रति चरण ३२ अक्षर, ८-८ अक्षरों पर विश्राम, अंत २ लघु !


    निकसत म्यान ते ही, छटा घन म्यान ते ही
    कालजीह लह लह, होय रही हल हल,
    लागे अरी गर गेरे, धर पर धर सिर,
    धरत ना ढहर चारों, चक्क परैं चल चल !

    (आ) घनाक्षरी का दूसरा रूप है "रूप-घनाक्षरी", लक्षण: प्रति चरण ३२ अक्षर, १६-१६ पर दो विश्राम, इक्त्तीस्वां (३१ वाँ) दीर्घ, बत्तीसवां (३२ वाँ ) लघु !
    मिसाल :

    अबिचल नगर उजागर सकल जग
    जाहर जहूर जहाँ जोति है जबर जान
    खंडे हैं प्रचंड खर खड़ग कुवंड धरे
    खंजर तुफंग पुंज करद कृपान बान !

    (इ) घनाक्षरी का तीसरा रूप है "जलहरण", लक्षण: रूप है प्रति चरण ३२ अक्षर, १६-१६ पर दो विश्राम, इक्त्तीस्वां (३१ वाँ) लघु, बत्तीसवां (३२ वाँ ) दीर्घ, !

    देवन के धाम धूलि ध्व्स्न कै धेनुन की
    धराधर द्रोह धूम धाम कलू धांक परा
    साहिब सुजन फ़तेह सिंह देग तेग धनी
    देत जो न भ्रातन सो सीस कर पुन्न हरा !

    (ई) घनाक्षरी का चौथा रूप है "देव-घनाक्षरी", लक्षण: रूप है प्रति चरण ३३ अक्षर, तीन विश्राम ८ पर, चौथा ९ पर, अंत में "नगण " !

    सिंह जिम गाजै सिंह,
    सेना सिंह घटा अरु,
    बीजरी ज्यों खग उठै,
    तीखन चमक चमक

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  2. आ० आचार्य जी,
    सुन्दर प्रस्तुति , उपदेशक घनाक्षरी ,साधुवाद !
    कमल

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  3. ‘ग्वाल’ कवि जी का एक छंद :-

    जिस का जितेक साल भर में ख़रच, तिस्से-
    चाहिए तौ दूना, पै, सवाया तौ कमा रहै|

    हूरिया परी सी नूर नाजनी सहूर वारी,
    हाजिर हमेश होंय, तौ दिल थमा रहै|

    ‘ग्वाल’ कवि साहब कमाल इल्म सो’बत हो
    याद में ग़ुसैंया की हमेश बिरमा रहै|

    खाने को हमा रहै, ना काहू की तमा रहै, जो –
    गाँठ में जमा रहै, तौ हाजिर जमा रहै||

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