रविवार, 29 मई 2011

मुक्तिका: आँख -- संजीव 'सलिल'

मुक्तिका:
आँख
संजीव 'सलिल'
*
आँख में पानी न आना चाहिए.
आँख का पानी न जाना चाहिए..

आँख मिलने का बहाना चाहिए.
आँख-आँखों में समाना चाहिए..

आँख लड़ती आँख से मिल दिल खिले.
आँख को नज़रें चुराना चाहिए..

आँख घूरे, झुक चलाये तीर तो.
आँख आँखों से लड़ाना चाहिए..

आँख का अंधा अदेखा देखता.
आँख ना आना न जाना चाहिए..

आँख आँखों से मिले हँसकर गले.
आँख में सपना सुहाना चहिये..

आँख झाँके आँख में सच ना छिपे.
आँख को बिजली गिराना चाहिए..

आँख करती आँख से बातें 'सलिल'
आँख आँख को करना बहाना चाहिए..

आँख का इंगित 'सलिल' कुछ तो समझ.
आँख रूठी मिल मनाना चाहिए..
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Acharya Sanjiv Salil

http://divyanarmada.blogspot.com

4 टिप्‍पणियां:

  1. achal verma ekavita,

    पडी तनिक सी काकरी , नैन हुए बेचैन |


    उन नैनन की क्या कहूं , जिन नैनन में नैन |

    Your's ,

    Achal Verma

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  2. Dr.M.C. Gupta ✆ ekavita

    सलिल जी,

    सुंदर अक्षि-आख्यान है.


    एक रोज़मर्रा की सलाह भी--


    नौकरी तो कीजिए पर बास की
    आँख में हरगिज़ न आना चाहिए

    --ख़लिश

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  3. - dkspoet@yahoo.com

    आदरणीय सलिल जी,
    इतनी सारी आँखों को एक साथ देखकर मजा आ गया। बधाई स्वीकार कीजिए।
    सादर

    धर्मेन्द्र कुमार सिंह ‘सज्जन’

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  4. आ० आचार्य जी,
    ' आँख का पानी न जाना चाहिए ' सुन्दर कथ्य ,बधाई |
    आँख पर सभी मुक्तिका सटीक हैं | साधुवाद !
    कमल

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