दोहा सलिला-
संजीव 'सलिल' वक्-संगति में भी तनिक, गरिमा सके न त्याग.
राजहंस पहचान लें, 'सलिल' आप ही आप..
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चाहे कोयल-नीड़ में, निज अंडे दे काग.
शिशु न मधुर स्वर बोलता, गए कर्कश राग..
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रहें गृहस्थों बीच पर, अपना सके न भोग.
रामदेव बाबा 'सलिल', नित करते हैं योग..
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मैकदे में बैठकर, प्याले पे प्याले पी गये.
'सलिल' फिर भी होश में रह, हाय! हम तो जी गए..
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खूब आरक्षण दिया है, खूब बाँटी राहतें.
झुग्गियों में जो बसे, सुधरी नहीं उनकी गतें..
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थक गए उपदेश देकर, संत मुल्ला पादरी.
सुन रहे प्रवचन मगर, छोड़ें नहीं श्रोता लतें.
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१८ अप्रैल
जवाब देंहटाएंआ० आचार्य जी,
परिवेश का सुन्दर निरूपण द्विपदीयों में | साधुवाद |
कमल
achal verma
जवाब देंहटाएंekavita
१९ अप्रैल
गए शायद टंकड़ की भूल है गाये के लिए|
थक गए उपदेश देकर, संत मुल्ला पादरी.
सुन रहे प्रवचन मगर, छोड़ें नहीं श्रोता लतें.
राम आये कृष्ण आये बुद्ध भी आये जहां
संत मुल्ला पादरी क्या बदल पायेंगे वहाँ |
बदलना संभव नहीं जब तक चले ये कारवाँ
अपने को बदलें तो सब परिवेश बदलेगा यहाँ |
Your's ,
Achal Verma
- mcdewedy@gmail.com
जवाब देंहटाएंसलिल जी.
Sundar evaM saarthak दोहे. बधाई.
- santosh.bhauwala@gmail.com
जवाब देंहटाएंआदरणीय सलिल जी ,
बहुत ही सुंदर द्विपदियाँ, बधाई !!
सादर
संतोष भाऊवाला
आप सबको धन्यवाद.
जवाब देंहटाएंअचल जी आप सही हैं.
संतोष जी यहाँ कुछ दोहे हैं, कुछ दोहे नहीं हैं. उर्दू के शे'र की तरह कुछ द्विपदियाँ हैं.
Acharya Sanjiv Salil
Sameer Lal - बढ़िया......
जवाब देंहटाएंगए कर्कश राग......*गाए कर्कश राग..
सलिल जी की द्विपदियॉं हों या अन्य कोई साहित्य कृति, मनन चिंतन तो सहज ही आ जाता है।
जवाब देंहटाएंसभी द्विपदिया भाव प्रधान और सार्थक, साधुवाद आचार्य जी |
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