शनिवार, 16 अप्रैल 2011

कुछ द्विपदियाँ : संजीव 'सलिल'

दोहा सलिला-
संजीव 'सलिल'
वक्-संगति में भी तनिक, गरिमा सके न त्याग.
राजहंस पहचान लें, 'सलिल' आप ही आप..      
*
चाहे कोयल-नीड़ में, निज अंडे दे काग.
शिशु न मधुर स्वर बोलता, गए कर्कश राग..
*
रहें गृहस्थों बीच पर, अपना सके न भोग.
रामदेव बाबा 'सलिल', नित करते हैं योग..
*
मैकदे में बैठकर, प्याले पे प्याले पी गये.
'सलिल' फिर भी होश में रह, हाय! हम तो जी गए..
*
खूब आरक्षण दिया है, खूब बाँटी राहतें.
झुग्गियों में जो बसे, सुधरी नहीं उनकी गतें..
*
थक गए उपदेश देकर, संत मुल्ला पादरी.
सुन रहे प्रवचन मगर, छोड़ें नहीं श्रोता लतें.
*

8 टिप्‍पणियां:

  1. १८ अप्रैल


    आ० आचार्य जी,
    परिवेश का सुन्दर निरूपण द्विपदीयों में | साधुवाद |
    कमल

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  2. achal verma
    ekavita

    १९ अप्रैल

    गए शायद टंकड़ की भूल है गाये के लिए|

    थक गए उपदेश देकर, संत मुल्ला पादरी.
    सुन रहे प्रवचन मगर, छोड़ें नहीं श्रोता लतें.
    राम आये कृष्ण आये बुद्ध भी आये जहां
    संत मुल्ला पादरी क्या बदल पायेंगे वहाँ |
    बदलना संभव नहीं जब तक चले ये कारवाँ
    अपने को बदलें तो सब परिवेश बदलेगा यहाँ |



    Your's ,

    Achal Verma

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  3. महेश चन्द्र द्विवेदी.रविवार, अप्रैल 24, 2011 10:38:00 am

    - mcdewedy@gmail.com

    सलिल जी.
    Sundar evaM saarthak दोहे. बधाई.

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  4. - santosh.bhauwala@gmail.com

    आदरणीय सलिल जी ,
    बहुत ही सुंदर द्विपदियाँ, बधाई !!
    सादर
    संतोष भाऊवाला

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  5. आप सबको धन्यवाद.

    अचल जी आप सही हैं.

    संतोष जी यहाँ कुछ दोहे हैं, कुछ दोहे नहीं हैं. उर्दू के शे'र की तरह कुछ द्विपदियाँ हैं.
    Acharya Sanjiv Salil

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  6. Sameer Lal - बढ़िया......

    गए कर्कश राग......*गाए कर्कश राग..

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  7. सलिल जी की द्विपदियॉं हों या अन्‍य कोई साहित्‍य कृति, मनन चिंतन तो सहज ही आ जाता है।

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  8. सभी द्विपदिया भाव प्रधान और सार्थक, साधुवाद आचार्य जी |

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