मन तरंगित
संजीव 'सलिल'
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मन तरंगित, तन तरंगित.
झूमता फागुन तरंगित..
होश ही मदहोश क्यों है?
गुन चुके, अवगुन तरंगित..
श्वास गिरवी आस रखती.
प्यास का पल-छिन तरंगित..
शहादत जो दे रहे हैं.
हैं न वे जन-मन तरंगित..
बंद है स्विस बैंक में जो
धन, न धन-स्वामी तरंगित..
सचिन ने बल्ला घुमाया.
गेंद दौड़ी रन तरंगित..
बसंती मौसम नशीला
'सलिल' संग सलिला तरंगित..
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Acharya Sanjiv Salil
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- santosh.bhauwala@gmail.com
जवाब देंहटाएंआदरणीय सलिल जी ,
मुक्तिका पढ़ कर मन तरंगित हो गयाI आपकी लेखनी को नमन!!
सादर संतोष भाउवाला
आपकी रचना ने रंग दिखाया
जवाब देंहटाएंShanno Aggarwal 21 मार्च 18:14