बाल गीत:
"कितने अच्छे लगते हो तुम "
संजीव वर्मा 'सलिल'
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कितने अच्छे लगते हो तुम |
बिना जगाये जगते हो तुम ||
नहीं किसी को ठगते हो तुम |
सदा प्रेम में पगते हो तुम ||
दाना-चुग्गा मंगते हो तुम |
चूँ-चूँ-चूँ-चूँ चुगते हो तुम ||
आलस कैसे तजते हो तुम?
क्या प्रभु को भी भजते हो तुम?
चिड़िया माँ पा नचते हो तुम |
बिल्ली से डर बचते हो तुम ||
क्या माला भी जपते हो तुम?
शीत लगे तो कँपते हो तुम?
सुना न मैंने हँसते हो तुम |
चूजे भाई! रुचते हो तुम |
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sundar ati sundar
जवाब देंहटाएंडॉ.उमाशंकर चतुर्वेदी 'कंचन' …
जवाब देंहटाएंबहुत - बहुत धन्यवाद के साथ -
चूहे जैसा विषय उठाया ।
सबके दिल को है हरषाया ॥
आचार्य वर्मा श्री संजीव ।
विषय काव्य का नन्हा जीव ॥
ऐसी रचना रचते हो तुम ।
मुझको अच्छे लगते हो तुम ॥
धर्मेन्द्र कुमार सिंह ‘सज्जन’ …
जवाब देंहटाएंआचार्य जी का तो वाकई कोई जवाब नहीं है। और उनकी यह रचना ‘चूहे’ पर नहीं ‘चूजे’ पर है।
Navin C. Chaturvedi …
जवाब देंहटाएंधर्मेन्द्र भाई टंकण दोष के लिए क्षमा प्रार्थी हूँ| आपकी पैनी नज़र को सलाम मित्र|
१७ जनवरी २०११ १०:२८ अपराह्न
जवाब देंहटाएंमयंक अवस्थी ने कहा…
आचार्य जी का विषय "विशिष्ट" है --भाषाप्रवाहमयी है और प्रस्तुति सरस है --मैं आप सभी बुद्धिजीवियों को नमन करता हूँ -"काव्यशास्त्र विनोदेन कालो गच्छति धीमताम" --आप लोग आनन्द लें --मैं तो खैनी दाब के अब निद्राग्रस्त होने जा रहा हूँ
२० जनवरी २०११ ९:३१ अपराह्न
आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल' …
चूहे-चूजे को मिला, हैं नवीन जी मस्त.
सज्जन कंचन मिल रखें, सलिल-शीश पर हस्त.
ज्यों मयंक बिन ज्योत्सना, हो जाती है त्रस्त.
चौपाई-दोहे बिना त्यों, कविता हो लस्त..