चौपाई सलिला: १.
क्रिसमस है आनंद मनायें
संजीव 'सलिल'
*
खुशियों का त्यौहार है, खुशी मनायें आप.
आत्म दीप प्रज्वलित कर, सकें जगत में व्याप..
*
क्रिसमस है आनंद मनायें, हिल-मिल केक स्नेह से खायें.
लेकिन उनको नहीं भुलाएँ, जो भूखे-प्यासे रह जायें.
कुछ उनको भी दे सुख पायें, मानवता की जय-जय गायें.
मन मंदिर में दीप जलायें, अंधकार को दूर भगायें.
जो प्राचीन उसे अपनायें, कुछ नवीन भी गले लगायें.
उगे प्रभाकर शीश झुकायें, सत-शिव-सुंदर जगत बनायें.
चौपाई कुछ रचें-सुनायें, रस-निधि पा रस-धार बहायें.
चार पाये संतुलित बनायें, सोलह कला-छटा बिखरायें.
जगण-तगण चरणान्त न आयें, सत-शिव-सुंदर भाव समायें.
नेह नर्मदा नित्य नहायें, सत-चित -आनंद पायें-लुटायें..
हो रस-लीन समाधि रचायें, नये-नये नित छंद बनायें.
अलंकार सौंदर्य बढ़ायें, कवियों में रस-खान कहायें..
बिम्ब-प्रतीक अकथ कह जायें, मौलिक कथ्य तथ्य बतलायें.
समुचित शब्द सार समझायें, सत-चित-आनंद दर्श दिखायें..
*
चौपाई के संग में, दोहा सोहे खूब.
जो लिख-पढ़कर समझले, सके भावमें डूब..
*************
चौपाई हिन्दी काव्य के सर्वकालिक सर्वाधिक लोकप्रिय छंदों में से एक है. आप जानते हैं कि चौपायों के चार पैर होते हैं जो आकार-प्रकार में पूरी तरह समान होते हैं. इसी तरह चौपाई के चार चरण एक समान सोलह कलाओं (मात्राओं) से
युक्त होते हैं. चौपाई के अंत में जगण (लघु-गुरु-लघु) तथा तगण (गुरु-गुरु-लघु) वर्जित कहे गये हैं. चारों चरणों के उच्चारण में एक समान समय लगने के कारण
इन्हें विविध रागों तथा लयों में गाया जा सकता है. गोस्वामी तुलसीदास जी कृत
रामचरित मानस में चौपाई का सर्वाधिक प्रयोग किया गया है. चौपाई के साथ
दोहे की संगति सोने में सुहागा का कार्य करती है. चौपाई के साथ सोरठा,
छप्पय, घनाक्षरी, मुक्तक आदि का भी प्रयोग किया जा सकता है. लम्बी काव्य
रचनाओं में छंद वैविध्य से सरसता में वृद्धि होती है.
Acharya Sanjiv Salil
http://divyanarmada.blogspot.com
क्रिसमस है आनंद मनायें
संजीव 'सलिल'
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खुशियों का त्यौहार है, खुशी मनायें आप.
आत्म दीप प्रज्वलित कर, सकें जगत में व्याप..
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क्रिसमस है आनंद मनायें, हिल-मिल केक स्नेह से खायें.
लेकिन उनको नहीं भुलाएँ, जो भूखे-प्यासे रह जायें.
कुछ उनको भी दे सुख पायें, मानवता की जय-जय गायें.
मन मंदिर में दीप जलायें, अंधकार को दूर भगायें.
जो प्राचीन उसे अपनायें, कुछ नवीन भी गले लगायें.
उगे प्रभाकर शीश झुकायें, सत-शिव-सुंदर जगत बनायें.
चौपाई कुछ रचें-सुनायें, रस-निधि पा रस-धार बहायें.
चार पाये संतुलित बनायें, सोलह कला-छटा बिखरायें.
जगण-तगण चरणान्त न आयें, सत-शिव-सुंदर भाव समायें.
नेह नर्मदा नित्य नहायें, सत-चित -आनंद पायें-लुटायें..
हो रस-लीन समाधि रचायें, नये-नये नित छंद बनायें.
अलंकार सौंदर्य बढ़ायें, कवियों में रस-खान कहायें..
बिम्ब-प्रतीक अकथ कह जायें, मौलिक कथ्य तथ्य बतलायें.
समुचित शब्द सार समझायें, सत-चित-आनंद दर्श दिखायें..
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चौपाई के संग में, दोहा सोहे खूब.
जो लिख-पढ़कर समझले, सके भावमें डूब..
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चौपाई हिन्दी काव्य के सर्वकालिक सर्वाधिक लोकप्रिय छंदों में से एक है. आप जानते हैं कि चौपायों के चार पैर होते हैं जो आकार-प्रकार में पूरी तरह समान होते हैं. इसी तरह चौपाई के चार चरण एक समान सोलह कलाओं (मात्राओं) से
युक्त होते हैं. चौपाई के अंत में जगण (लघु-गुरु-लघु) तथा तगण (गुरु-गुरु-लघु) वर्जित कहे गये हैं. चारों चरणों के उच्चारण में एक समान समय लगने के कारण
इन्हें विविध रागों तथा लयों में गाया जा सकता है. गोस्वामी तुलसीदास जी कृत
रामचरित मानस में चौपाई का सर्वाधिक प्रयोग किया गया है. चौपाई के साथ
दोहे की संगति सोने में सुहागा का कार्य करती है. चौपाई के साथ सोरठा,
छप्पय, घनाक्षरी, मुक्तक आदि का भी प्रयोग किया जा सकता है. लम्बी काव्य
रचनाओं में छंद वैविध्य से सरसता में वृद्धि होती है.
Acharya Sanjiv Salil
http://divyanarmada.blogspot.com
वाह ! संजीव जी आपने बहुत सुंदर कविता लिखी
जवाब देंहटाएंLata Ojha
जवाब देंहटाएंजो प्राचीन उसे अपनायें.
कुछ नवीन भी गले लगायें.
उगे प्रभाकर शीश झुकायें.
सत-शिव-सुंदर जगत बनायें
बहुत ही सुंदर रचना है 'सलिल 'जी.
आचार्य जी, सभी चौपाई सुंदर और सार्थक है , बधाई ...
जवाब देंहटाएं