निज मन से हांरे हैं...
संजीव 'सलिल'
*
कौन, किसे, कैसे समझाये
सब निज मन से हारे हैं.....
*
इच्छाओं की कठपुतली हम
बेबस नाच दिखाते हैं.
उस पर भी तुर्रा यह, खुद को
तीसमारखां पाते हैं.
रास न आये सच कबीर का
हम बुदबुद-गुब्बारे हैं.....
*
बिजली के जिन तारों से
टकरा पंछी मर जाते हैं.
हम नादां उनका प्रयोग कर,
घर में दीप जलाते हैं.
कोई न जाने कब चुप हों
नाहक बजते इकतारे हैं.....
*
पान, तमाखू, ज़र्दा, गुटका,
खुद खरीदकर खाते हैं.
जान हथेली पर रखकर-
वाहन जमकर दौड़ाते हैं.
'सलिल' शहीदों के वारिस या
दिशाहीन बंजारे हैं.....
*********************
.
खुद को
जवाब देंहटाएंतीसमारखां पाते हैं......
सब मन का भ्रम और खुद को भुलावे मे रखने का प्रयत्न
जान हथेली पर रखकर-
वाहन जमकर दौड़ाते हैं.........
नासमझी का सबसे बढ़िया उदाहरण...
बहुत बढ़िया आचार्य जी,सुंदर रचना ...
बहुत सुंदर रचना है ..
जवाब देंहटाएंअपनी ही कमियों को नज़रअंदाज़ कर के खुद को सही साबित करने की कोशिश का कितना सटीक वर्णन..वाह!
"दिशाहीन बन्जारे"
जवाब देंहटाएंवाह वाह वाह, सलिल जी कमाल किया है आपने इस नवगीत में| कमाल है कमाल है| पहली से आख़िरी पंक्ति तक पूरी की पूरी रचना मन को उद्वेलित करती है|
आप सबकी गुण ग्राहकता को समर्पित हैं चंद पंक्तियाँ
जवाब देंहटाएंबागी लता नवीन मिथक है,
देख चकित रह जाते हैं.
हों न प्रभाकर तो योगी-
तम में बरबस भरमाते हैं.
शकुनी पांसे थामे तो
दुर्योधन के पौ बारे हैं.....
*
बिजली के जिन तारों से
जवाब देंहटाएंटकरा पंछी मर जाते हैं.
हम नादां उनका प्रयोग कर,
घर में दीप जलाते हैं.
कोई न जाने कब चुप हों
नाहक बजते इकतारे हैं.....
jai ho bahut khubsurat
इच्छाओं की कठपुतली हम
जवाब देंहटाएंबेबस नाच दिखाते हैं.
उस पर भी तुर्रा यह, खुद को
तीसमारखां पाते हैं.
ये लाइंस तो कुछ ज्यादा ही कमाल हैं...मज़ा आ गया