नवगीत:
मुहब्बत
संजीव 'सलिल'
*
दिखाती जमीं पे
है जीते जी
खुदा की है ये
दस्तकारी मुहब्बत...
*
मुहब्बत जो करते,
किसी से न डरते.
भुला सारी दुनिया
दिलवर पे मरते..
न तजते हैं सपने,
बदलते न नपने.
आहें भरें गर-
लगे दिल भी कंपने.
जमाना को दी है
खुदा ने ये नेमत...
*
दिलों को मिलाओ,
गुलों को खिलाओ.
सपने न टूटें,
जुगत कुछ भिड़ाओ.
दिलों से मिलें दिल.
कली-गुल रहें खिल.
मिले आँख तो दूर
पायें न मंजिल.
नहीं इससे ज्यादा
'सलिल' है मसर्रत...
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खूबसूरत --बधाई !
जवाब देंहटाएंसुधा ओम ढींगरा,
♫
ceddlt@yahoo.com
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जवाब देंहटाएंbahut khoob shat shat naman achryaji
दिलों को मिलाओ,
जवाब देंहटाएंगुलों को खिलाओ.
सपने न टूटें,
जुगत कुछ भिड़ाओ.....बहुत सही
न तजते हैं सपने,
जवाब देंहटाएंबदलते न नपने.
आहें भरें गर-
लगे दिल भी कंपने...
वाह आचार्य जी वाह, बेहतरीन है यह ...