शनिवार, 18 दिसंबर 2010

नवगीत: मुहब्बत संजीव 'सलिल'

नवगीत:                                                                    
मुहब्बत

संजीव 'सलिल'
*
दिखाती जमीं पे
है जीते जी
खुदा की है ये
दस्तकारी मुहब्बत...
*
मुहब्बत जो करते,
किसी से न डरते.
भुला सारी दुनिया
दिलवर पे मरते..

न तजते हैं सपने,
बदलते न नपने.
आहें भरें गर-
लगे दिल भी कंपने.
जमाना को दी है
खुदा ने ये नेमत...
*
दिलों को मिलाओ,
गुलों को खिलाओ.
सपने न टूटें,
जुगत कुछ भिड़ाओ.

दिलों से मिलें दिल.
कली-गुल रहें खिल.
मिले आँख तो दूर
पायें न मंजिल.
नहीं इससे ज्यादा
'सलिल' है मसर्रत...
***********

4 टिप्‍पणियां:

  1. खूबसूरत --बधाई !


    सुधा ओम ढींगरा,

    ceddlt@yahoo.com

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  2. - mandalss@gmail.com


    bahut khoob shat shat naman achryaji

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  3. दिलों को मिलाओ,
    गुलों को खिलाओ.
    सपने न टूटें,
    जुगत कुछ भिड़ाओ.....बहुत सही

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  4. न तजते हैं सपने,
    बदलते न नपने.
    आहें भरें गर-
    लगे दिल भी कंपने...

    वाह आचार्य जी वाह, बेहतरीन है यह ...

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