मुक्तिका:
संजीव 'सलिल'
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सारा जग पाये उपहार ये दीपोंका.
हर घर को भाये सिंगार ये दीपोंका..
रजनीचर से विहँस प्रभाकर गले मिले-
तारागण करते सत्कार ये दीपोंका..
जीते जी तम को न फैलने देते हैं
हम सब पर कितना उपकार ये दीपोंका..
निज माटी से जुड़ी हुई जो झोपड़ियाँ.
उनके जीवन को आधार है दीपों का..
रखकर दिल में आग, अधर पर हास रखें.
'सलिल' सीख जीवन-व्यवहार ये दीपोंका..
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आदरणीय आचार्य सलिल जी - अति उत्तम !
जवाब देंहटाएं//रजनीचर से विहँस प्रभाकर गले मिले-
तारागण करते सत्कार ये दीपों का..//
क्या सजीव चित्रं किया है आपने, ग़ज़ल की जुबान में इसको मंज़र निगारी कहा जाता है !
//जो माटी से जुडी हुई हैं झोपड़ियाँ.
उनके जीवन को आधार है दीपों का. //
लाजवाब - बहुत गहरी बात कह दी इन दो पंक्तियों में आपने ! साधुवाद स्वीकार करें ! .
Gita :
जवाब देंहटाएंआहा....
आज तो उजियारा ही उजियारा है....
.आभार....
आप कैसे हैं..?
प्रणाम...
रखकर दिल में आग, अधर पर हास रखें.
जवाब देंहटाएं'सलिल' सीख जीवन-व्यवहार ये दीपों का..
acharya ji yaha aapne rangat puri tarah se bhar dali. bahu sukhad lga padh kar.