मुक्तिका:
सच्चा नेह
संजीव 'सलिल'
*
तुमने मुझसे सच्चा नेह लगाया था.
पीट ढिंढोरा जग को व्यर्थ बताया था..
मेरे शक-विश्वास न तुमको ज्ञात तनिक.
सत-शिव-सुंदर नहीं पिघलने पाया था..
पूजा क्यों केवल निज हित का हेतु बनी?
तुझको भरमाता तेरा ही साया था..
चाँद दिखा आकर्षित तुझको किया तभी
गीत चाँदनी का तूने रच-गाया था..
माँगा हिन्दी का, पाया अंग्रेजी का
फूल तभी तो पैरों तले दबाया था..
प्रीत अमिय संदेह ज़हर है सच मानो.
इसे हृदय में उसको कंठ बसाया था..
जूठा-मैला किया तुम्हींने, निर्मल था
व्यथा-कथा को नहीं 'सलिल' ने गाया था..
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