मंगलवार, 2 नवंबर 2010

मुक्तिका: संजीव 'सलिल'

मुक्तिका:

संजीव 'सलिल'
*
ज्यों मोती को आवश्यकता सीपोंकी.
मानव मन को बहुत जरूरत दीपोंकी..

संसद में हैं गर्दभ श्वेत वसनधारी
आदत डाले जनगण चीपों-चीपोंकी..

पदिक-साइकिल के सवार घटते जाते
जनसंख्या बढ़ती कारों की, जीपोंकी..

चीनी झालर से इमारतें है रौशन
मंद हो रही ज्योति झोपड़े-चीपों की..

नहीं मिठाई और पटाखे कवि माँगे
चाह 'सलिल' मन में तालीकी, टीपोंकी..

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8 टिप्‍पणियां:

  1. क्या बात है आचार्य जी! बहुत खूब बहुत खूब| हमारे शायर बंधु कहीं व्यस्त लग रहे हैं| जब तक उन्हें आने में समय लग रहा है, आप समा बाँध रहे हैं| बड़ा ही आनंद आ रहा है| जय हो|

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  2. ज्यों मोती को आवश्यकता सीपोंकी.
    मानव मन को बहुत जरूरत दीपोंकी..
    bahut sundar!!!!

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  3. पदिक-साइकिल के सवार घटते जाते
    जनसंख्या बढ़ती कारों की, जीपोंकी..

    सत्य कथन आचार्य जी, सुंदर रचना, बहुत बढ़िया ,

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  4. Gita Pandit

    हिन्दी गज़ल माला में एक और सुंदर मनका पिरोती हुई
    आपकी सुंदर समसामयिक गजल ....
    बधाई आपको और मेरा नमन.....

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  5. Gita Pandit
    मुक्तिका और गज़ल में क्या अंतर है...
    please.....समझाएं....

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  6. मुक्तिका हिन्दी की ऐसी काव्य विधा है जिसमें दो-दो पंक्तियों की द्विपदियों में भिन्न-भिन्न भावभूमि और बिम्ब समाहित होते हैं जिनमें आपस में कोई संबंध नहीं होता. प्रथम द्विपदी की दोनों पंक्तियों तथा शेष द्विपदियों के सम पद (दूसरी पंक्ति) में पदांत तथा तुकांत होना आवश्यक होता है. यहाँ तह मुक्तिका और उर्दू की ग़ज़ल में समरूपता है, इसलिए इसे हिंदी ग़ज़ल भी कहा लिया जाता है.

    दोनों में अंतर:

    १. मुक्तिका में कोई पूर्व निर्धारित लय-खंड नहीं होते जबकि उर्दू ग़ज़ल में पूर्व निर्धारित लयखंड (बहर) हैं जिनसे हटकर ग़ज़ल कही जाये तो खारिज (अमान्य) कर दी जाती है. मुक्तिका में हिन्दी या अन्य भाषाओँ के छन्दों का भी प्रयोग कर लिया जाता है.

    २. उर्दू ग़ज़ल में शेर के मिसरों का वज्न तख्ती के अनुसार किया जाता है... वहां हर्फ़ गिराने (किसी शब्द में से अक्षर को हटाने या गुरु को लघु करने) की प्रथा है. मुक्तिका की द्विपदियों का पदभार हिंदी व्याकरण की मात्रा गणना के नियमों के अनुसार किया जाता है. दोनों विधियों से गिनने पर कभी समान परिणाम होता है कभी भिन्न.

    ३. ग़ज़ल में अरबी-फारसी शब्दों तथा मुक्तिका में संस्कृत या देशज भाषाओँ के शब्दों का प्रयोग अधिक होता है.

    ४. ग़ज़ल में काफिया-रदीफ़ संबंधी कई नियम हैं जिन्हें जाने बिना लिखी गयी हिन्दी के रचनाकारों की लगभग ९० % गज़लें खारिज हैं.

    अधिक विस्तार से फिर कभी स्वतंत्र लेख में देने का प्रयास करूंगा. दिव्यनर्मदा.ब्लागस्पाट.कॉम देखती रहें.

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  7. नहीं मिठाई और पटाखे कवि माँगे
    चाह 'सलिल' मन में तालीकी, टीपोंकी..
    Taliyan to goonj rahi hain sir ji.

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  8. कर ने कर पर कर दिये, अनगिन 'सलिल' प्रहार.
    या कर ने कर को दिया, ताली का उपहा???

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