शुक्रवार, 5 नवंबर 2010

गीत: दीपावली मनायें ------ संजीव 'सलिल'

गीत: 
                                                         
दीपावली मनायें

संजीव 'सलिल'
*
दीप-ज्योति बनकर हम जग में नव-प्रकाश फैलायें.
नित्य आत्म-परमात्म संग-संग दीपावली मनायें...
*
फैले चारों और रौशनी, तनिक न हो अवरोध.
सबको उन्नति का अवसर हो, स्वाभिमान का बोध..
पढ़ने-बढ़ने, जीवन गढ़ने का सबको अधिकार.
जितना पायें, दूना बाँटें बढ़े परस्पर प्यार..

सब तम पीकर, बाँट उजाला, 'सलिल' अमर हो जायें.
नित्य आत्म-परमात्म संग-संग दीपावली मनायें...
*
अमावसी करा को तोड़ें, रहें पूर्णिमा मुक्त.
निजहित में ही बसे सर्वहित, जनगण-मन संयुक्त..
श्रम-सीकर की स्वेद गंग में, नित्य करें अवगाहन.
रचें शून्य से सृष्टि रमा नारी हो, नर नारायण..

बने आत्म विश्वात्म, तभी परमात्म प्राप्त कर पायें.
नित्य आत्म-परमात्म संग-संग दीपावली मनायें...
*
एक दीप गर जले अकेला तूफां उसे बुझाता.
शत दीपोंसे जग रौशन हो, अन्धकार डर जाता.
शक्ति एकता में होती है, जो चाहे वह कर दे.
माटी के दीपक को भी वह तम हरने का वर दे..

उतरे स्वर्ग धरा पर खुद जब सरगम-स्वर सँग गायें.
नित्य आत्म-परमात्म संग-संग दीपावली मनायें...
*

6 टिप्‍पणियां:

  1. veena_vij@hotmail.com

    Bahut hi sunder!....veena vij 'udit'

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  2. आपको भी दिवाली की शुभकामनायें...सादर

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  3. शक्ति एकता में होती है, जो चाहे वह कर दे.
    माटी के दीपक को भी वह तम हरने का वर दे..
    sutra vakya hai yah to!
    sundar rachna!!!

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  4. धर्मेन्द्र कुमार सिंहशनिवार, नवंबर 06, 2010 1:03:00 pm

    एक दीप गर जले अकेला तूफां उसे बुझाता.
    शत दीपोंसे जग रौशन हो, अन्धकार डर जाता.
    शक्ति एकता में होती है, जो चाहे वह कर दे.
    माटी के दीपक को भी वह तम हरने का वर दे..

    बहुत सुन्दर आचार्य जी।
    शिल्प, कथ्य हर तरह से रचना बहुत प्रभावशाली है।
    बधाई

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  5. अत्युत्तम:-
    रचें शून्य से सृष्टि - रमा नारी हो, नर नारायण|

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  6. एक दीप गर जले अकेला तूफां उसे बुझाता.
    शत दीपोंसे जग रौशन हो, अन्धकार डर जाता.

    उत्तम रचना, बेहतरीन कथन , सुंदर गीत ,

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