बाल कविता:
संजीव 'सलिल'*
अंशू-मिंशू दो भाई हिल-मिल रहते थे हरदम साथ.
साथ खेलते साथ कूदते दोनों लिये हाथ में हाथ
अंशू तो सीधा-सादा था, मिंशू था बातूनी.ख्वाब देखता तारों के, बातें थीं अफलातूनी..
एक सुबह दोनों ने सोचा: 'आज करेंगे सैर'.
जंगल की हरियाली देखें, नहा, नदी में तैर..
अगर बड़ों को बता दिया तो हमें न जाने देंगे,
बहला-फुसला, डांट-डपट कर नहीं घूमने देंगे..
छिपकर दोनों भाई चल दिये हवा बह रही शीतल.पंछी चहक रहे थे, मनहर लगता था जगती-तल..
तभी सुनायी दीं आवाजें, दो पैरों की भारी.
रीछ दिखा तो सिट्टी-पिट्टी भूले दोनों सारी.. मिंशू को झट पकड़ झाड़ पर चढ़ा दिया अंशू ने.
ek baal-kavita mein itne saare sandesh de paane jaisa kaarya to aachaarya ji hi kar sakte hain. hamesha ki hi tarah सुदर kriti.
जवाब देंहटाएंक्या कहूँ रचना पढ़ी तो पढ़ता ही चल गया | बहुत ही अच्छी और एक ही कविता मैं कई संदेश |
जवाब देंहटाएंसही मायनों में उत्तम बाल कविता है ये सलिल जी| बधाई|
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर बाल गीत,
जवाब देंहटाएंबाल दिवस को ही पढ़ने को मिला|
Wah Mamaji.... Bahut acchi kavita hai. Apne aap ko kavita ke eak patra ke roop mein padh kar accha laga
जवाब देंहटाएंAapka
Minshu