शनिवार, 6 नवंबर 2010

व्यंग्य रचना: दीवाली : कुछ शब्द चित्र: संजीव 'सलिल'

व्यंग्य रचना:                                                                                   
दीवाली : कुछ शब्द चित्र:
संजीव 'सलिल'
*
माँ-बाप को
ठेंगा दिखायें.
सास-ससुर पर
बलि-बलि जायें.
अधिकारी को
तेल लगायें.
गृह-लक्ष्मी के
चरण दबायें.
दिवाली मनाएँ..
*
लक्ष्मी पूजन के
महापर्व को
सार्थक बनायें.
ससुरे से मांगें
नगद-नारायण.
न मिले लक्ष्मी
तो गृह-लक्ष्मी को
होलिका बनायें.
दूसरी को खोजकर,
दीवाली मनायें..
*
बहुमत न मिले
तो खरीदें.
नैतिकता को
लगायें पलीते.
कुर्सी पर
येन-केन-प्रकारेण
डट जाए.
झूम-झूमकर
दीवाली मनायें..
*
बोरी में भरकर
धन ले जाएँ.
मुट्ठी में समान
खरीदकर लायें.
मँहगाई मैया की
जट-जयकार गुंजायें
दीवाली मनायें..
*
बेरोजगारों के लिये
बिना पूंजी का धंधा,
न कोई उतार-चढ़ाव,
न कभी पड़ता मंदा.
समूह बनायें,
चंदा जुटायें,
बेईमानी का माल
ईमानदारी से पचायें.
दीवाली मनायें..
*
लक्ष्मीपतियों और
लक्ष्मीपुत्रों की
दासों उँगलियाँ घी में
और सिर कढ़ाई में.
शारदासुतों  की बदहाली,
शब्दपुत्रों की फटेहाली,
निकल रहा है दीवाला,
मना रहे हैं दीवाली..
*
राजनीति और प्रशासन,
अनाचार और दुशासन.
साध रहे स्वार्थ,
तजकर परमार्थ.
सच के मुँह पर ताला.
बहुत मजबूत
अलीगढ़वाला.
माना रहे दीवाली,
देश का दीवाला..
*
ईमानदार की जेब
हमेशा खाली.
कैसे मनाये होली?
ख़ाक मनाये दीवाली..
*
अंतहीन शोषण,
स्वार्थों का पोषण,
पीर, व्यथा, दर्द दुःख,
कथ्य कहें या आमुख?
लालच की लंका में
कैद संयम की सीता.
दिशाहीन धोबी सा
जनमत हिरनी भीता.
अफसरों के करतब देख
बजा रहा है ताली.
हो रहे धमाके
तुम कहते हो दीवाली??
*
अरमानों की मिठाई,
सपनों के वस्त्र,
ख़्वाबों में खिलौने
आम लोग त्रस्त.
पाते ही चुक गई
तनखा हरजाई.
मुँह फाड़े मँहगाई
जैसे सुरसा आई.
फिर भी ना हारेंगे.
कोशिश से हौसलों की
आरती उतारेंगे.
दिया एक जलाएंगे
दिवाली मनाएंगे..
*
Acharya Sanjiv Salil

http://divyanarmada.blogspot.com

16 टिप्‍पणियां:

  1. wah sir
    bahut achaa vartmaan kee sachee tasweert kheenchee hai sundar shabdon ke dharaa
    aaj kal yeahee ho rahaa hai sir.... ha ha ha ha ha very nice....bahut achaa sir....

    जवाब देंहटाएं
  2. सलिल जी इस व्यंग्य गीत को में व्यंग्य गीत के साथ साथ समाज सुधारक गीत भी कहना चाहूँगा| आप ने जो कटाक्ष किये हैं, वो पाठक को समाज का कुत्सित चेहरा दिखाने में सफल हैं| बधाई स्वीकारें आदरणीय|

    आपसे अनुरोध है कि शारदा जी द्वारा विचारित 'नारी-सारी' वाली शंका का समाधान कर के हम लोगों को आप के ज्ञान से लाभान्वित होने का मौका दें श्रीमान| हमें ऐसे मौके रोज रोज नहीं मिलते|

    इस टिप्पणी के लिखे जाने तक शारदा जी का प्रश्न पृष्ठ क्रमांक ४७ पर विद्यमान है|

    जवाब देंहटाएं
  3. बड़े ही सटीक व्यंग्य हैं। आचार्य जी को बधाई।

    जवाब देंहटाएं
  4. rachna mein sari vidambanaon ko vyangya ke madhyam se shabd diye hain....
    sateek!!!!
    regards,

    जवाब देंहटाएं
  5. mai navin ji se purntaya sahmat hu. bilkul satik vyang ke saath hi samaj sudharak bhi hai.

    जवाब देंहटाएं
  6. बहुत ही प्रभावशाली हैं ये शब्द चित्र। एक बार फिर आचार्य जी को बधाई।

    जवाब देंहटाएं
  7. कोशिश से हौसलों की
    आरती उतारेंगे.
    दिया एक जलाएंगे
    दिवाली मनाएंगे..
    ek diya hi kafi hai tam se ladne ko!!!
    sahaj se shabdchitra...
    regards,

    जवाब देंहटाएं
  8. habdo ka anutha prayog, bahut sundar prastuti. sach kahe to koi jod nahi. bejod.

    जवाब देंहटाएं
  9. प्रस्तुत शब्द चित्र में 'हिरनी भीता' शब्द प्रयोग आपसे कुछ पूछने के लिए प्रेरित कर रहा है आचार्य जी? कृपया इस पर तनिक प्रकाश डालें| साथ ही कुछ बातें, भले संक्षेप में ही, शब्द चित्र संबंधित प्रस्तुतियों पर भी अपेक्षित है|
    अंतिम भाग में उक्त रचना सब से मजबूत दिखाई पड़ती है| शत शत अभिनन्दन|
    बधाई सलिल जी|

    जवाब देंहटाएं
  10. लालच की लंका में
    कैद संयम की सीता.
    दिशाहीन धोबी सा
    जनमत हिरनी भीता.
    अफसरों के करतब देख
    बजा रहा है ताली.

    कोई देश अनुशासन और संयम से महान बनता है पर भारत में संयम रूपी सीता लालच की लंका में कैद है. दिशाहीन धोबी ने अवध में सीता का निर्वासन कराया था. शेर को देखकर भयभीत हिरनी दिशा भूलकर यहाँ-वहाँ दौड़ती है और... जनमत जनतंत्र में निर्णायक होता है पर हमारा जनमत धोबी की तरह दिशा भ्रमित होकर शेर से डरी हिरनी की तरह इधर-उधार भाग रहा है... अफसर मनमानी कर रहे हैं और उनका प्रतीक करने के स्थान पर जनमत स्तिति गान कर रहा है.

    जवाब देंहटाएं
  11. अच्छी रचना है, साथ मे कुछ ना समझ मे आने पर कवि द्वारा उसपर व्यापक प्रकाश डालना बेहतरीन और सार्थक है, यही OBO की उपलब्धि भी | अब तो निश्चित ही ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार सीखने सिखाने का मंच बनते जा रहा है |

    जवाब देंहटाएं
  12. आचार्य जी,
    सुन्दर व्यंग्य रचना है।
    "न मिले लक्ष्मी
    तो गृह-लक्ष्मी को
    होलिका बनायें.
    दूसरी को खोजकर,
    दीवाली मनायें"

    ’दूसरी को खोजकर" के बाद
    "यही सिलसिला जारी रखें" जोड़ सकते हैं!
    सस्नेह
    सीताराम चंदावरकर

    जवाब देंहटाएं
  13. आद० आचार्य जी अभिवादन
    लिखा खूब संजीव जी,किया व्यंग से दंग
    होली का यूँ कर चढा, दीवाली पर रंग
    बधाई स्वीकारें
    डा० अजय जनमेजय

    जवाब देंहटाएं
  14. बहुत ही सुन्दर रचना थी।
    जितनी तारीफ की जाये कम है।
    मेरा भी एक ब्लॉग है जिसमे भारत वर्ष की समस्याओं पर चुटीले
    कार्टून हैं जो मेने बनायें हैं।
    सभी से निवेदन हैं की उन पर अपने विचार और सुझाव अवश्य दें।
    http://cartoonswala.blogspot.in/

    जवाब देंहटाएं