मुक्तिका:
किसलिए?...
संजीव 'सलिल'
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हर दिवाली पर दिए तुम बालते हो किसलिए?
तिमिर हर दीपक-तले तुम पालते हो किसलिए?
चाह सूरत की रही सीरत न चाही थी कभी.
अब पियाले पर पियाले ढालते हो किसलिए?
बुलाते हो लक्ष्मी को लक्ष्मीपति के बिना
और वह भी रात में?, टकसालते हो किसलिए?
क़र्ज़ की पीते थे मय, ऋण ले के घी खाते रहे.
छिप तकादेदार को अब टालते हो किसलिए?
शूल बनकर फूल-कलियों को 'सलिल' घायल किया.
दोष माली पर कहो- क्यों डालते हो किसलिए?
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वाह वाह आचार्य जी , क्या खूब कही आपने "तिमिर हर दीपक-तले तुम पालते हो किसलिए ?" बेहतरीन ख्याल , बहुत ही सुंदर मुक्तिका, सार्थक विचारों से सजी मुक्तिका हेतु बधाई स्वीकार करे सर |
जवाब देंहटाएं'टकसालते' शब्द का प्रयोग बहुत ही जँचा मान्यवर| रिणं क्रुत्वा घ्रतं पिवेत पर भी सुदार टिप्पणी की है आपने| हर दिन आपसे कुछ नये की आशा रहेगी सलिल जी|
जवाब देंहटाएंआदरणीय आचार्य सलिल जी, हमेशा की ही तारह एक और बेहतरीन मुक्तिका आपकी कलम से निकली है जिसे पढ़कर ह्रदय आनंदित हो गया ! "टकसालते" शब्द सचमुच में बहुत ही ज़बरदस्त बना है इस रचना में ! एक छोटा सा निवेदन है, प्रथम दोनों पंक्तियाँ आपकी नज़ारे-सनी चाहती हैं !
जवाब देंहटाएं(पहली पंक्ति में)
हर दिवाली पर दिए तुम बालते हो किसलिए? (तुम +बालते)
(द्वितीय पंक्ति में) :
तिमिर हर दीपक-तले तुम पालते हो किसलिए? (तुम + पालते)
दोनों पंक्तियों में "तुम" शब्द के अंत के व्यंजन "म" और "बालते" एवं "पालते" के प्रारंभ के "ब" व "प" ग़ज़ल की भाषावली के मुताबिक शेअर में "सकता" पैदा कर रहे हैं, कृपया इन पर दोबारा से गौर फरमाएं !
प्रभाकर जी हिन्दी में सकता का दोष माना नहीं जाता... उर्दू में माना जाता है. सकता को दूर करने में कोई कठिनाई नहीं है. 'तुम' के स्थान पर ;'फिर' कर दीजिये.
जवाब देंहटाएंGita :
जवाब देंहटाएंअनुत्तरित प्रश्न....लेकिन कवि मन सबसे अधिक आहत होता है.....
बहुत सुंदर.....बधाई आपको....प्रणाम....
आदरणीय आचार्य सलिल जी, मेरी तुच्छ राय में जहाँ उच्चारण में शब्दों के गड्डमड्ड होने की बात हो तो कविता की सुन्दरता के लिए हिंदी-उर्दू के विधानों से उठ कर सोचने में कोई बुराई नहीं ! आप तो जानते ही हैं कि हिंदी या उर्दू में से कोई भी मेरी मादरी ज़ुबान नहीं है ! लेकिन मेरी मादरी जुबान पंजाबी की छंदबद्ध कविता में "सकते" को एक बड़ा ऐब माना जाता है ! सादर !
जवाब देंहटाएंबुलाते हो लक्ष्मी को लक्ष्मीपति के बिना
जवाब देंहटाएंऔर वह भी रात में?, टकसालते हो किसलिए?
क़र्ज़ की पीते थे मय, ऋण ले के घी खाते रहे.
छिप तकादेदार को अब टालते हो किसलिए?
mai tippani ke liye shabd nahi dhund pa raha hu. bahut achchha lag raha hai.
किसी भाषा की रचना के मानक उसी भाषा का व्याकरण-पिंगल हो सकता हैं. यदि मैं उर्दू की रचना को संस्कृत या हिन्दी के नियमों के आधार पर गलत कहूं तो क्या यह ठीक होगा? यदि नहीं तो फिर हिन्दी की रचना को उर्दू के मानकों के आधार पर क्यों परखा जाए. उर्दू का जन्म पंजाब की सीमा पर ही तब हुआ जब यवन हमलावरों के सिपाहियों ने सेना के लश्करों में स्थानीय लोगों से बात करना शुरू किया... इसलिए उर्दू में प्राकृत , हिंदी, पंजाबी, अरबी-फारसी के शब्द घुले-मिले हैं. भ्शिक आदान-प्रदान में सकता का नियम उर्दू से पंजाबी ने लिया या पंजाबी से उर्दू ने कहना कठिन है.
जवाब देंहटाएंमुक्तिका उर्दू में नहीं कही जाती... यह पूरी तरह हिंदी की काव्य विधा है... इसलिए सकता का दोष स्वीकार्य नहीं है. मैं संस्कृत काव्य में वर्णित काव्य-दोषों की जानकारी लेता हूँ, हिंदी काव्य परंपरा संस्कृत से ही उद्गमित है. यदि वहाँ उच्चारण के आधार पर एक वर्ग के दो शब्दों का इस तरह प्रयोग वर्जित हुआ तो इसे गलती मानकर बदल लूँगा अन्यथा अभी तो इसे त्रुटी नहीं मान पा रहा हूँ.
शब्द अगर निःशब्द हों, तब घटता है मौन.
जवाब देंहटाएंमौन घटे तो ज्ञात हो, सच्चा साथी कौन??