बुधवार, 27 अक्टूबर 2010

मुक्तिका: करवा चौथ संजीव 'सलिल'

मुक्तिका:

करवा चौथ

संजीव 'सलिल'
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करवा चौथ मनाने आया है चंदा.
दूर चाँदनी छोड़ भटकता क्यों बंदा..

खाली जेब हुई माँगे उपहार प्रिया.
निकल पड़ा है माँग-बटोरे कुछ चंदा..

घर जा भैये, भौजी पलक बिछाए है.
मत महेश के शीश बैठ होकर मंदा..

सूरज है स्वर्णाभ, चाँद पीताभ सलिल'
साँझ-उषा अरुणाभ, निशा का तम गंदा..

हर दंपति को जी भर खुशियाँ दे मौला.
'सलिल' मनाता शीश झुका आनंदकंदा..


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1 टिप्पणी:

  1. करवा चौथ मनाने आया है चंदा.
    दूर चाँदनी छोड़ भटकता क्यों बंदा..

    खाली जेब हुई माँगे उपहार प्रिया.
    निकल पड़ा है माँग-बटोरे कुछ चंदा..

    घर जा भैये, भौजी पलक बिछाए है.
    मत महेश के शीश बैठ होकर मंदा..

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    सलिल जी, आपका ज़वाब नहीं!

    --ख़लिश

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