प्रभु धन दे...
संजीव 'सलिल'
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प्रभु धन दे निर्धन मत करना.
माटी को कंचन मत करना.....
*
निर्बल के बल रहो राम जी,
निर्धन के धन रहो राम जी.
मात्र न तन, मन रहो राम जी-
धूल न, चंदन रहो राम जी..
भूमि-सुता तज राजसूय में-
प्रतिमा रख वंदन मत करना.....
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मृदुल कीर्ति प्रतिभा सुनाम जी.
देना सम सुख-दुःख अनाम जी.
हो अकाम-निष्काम काम जी-
आरक्षण बिन भू सुधाम जी..
वन, गिरि, ताल, नदी, पशु-पक्षी-
सिसक रहे क्रंदन मत करना.....
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बिन रमेश क्यों रमा राम जी,
चोरों के आ रहीं काम जी?
श्री गणेश को लिये वाम जी.
पाती हैं जग के प्रणाम जी..
माटी मस्तक तिलक बने पर-
आँखों का अंजन मत करना.....
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साध्य न केवल रहे चाम जी,
अधिक न मोहे टीम-टाम जी.
जब देना हो दो विराम जी-
लेकिन लेना तनिक थाम जी..
कुछ रच पाए कलम सार्थक-
निरुद्देश्य मंचन मत करना..
*
अब न सुनामी हो सुनाम जी,
शांति-राज दे, लो प्रणाम जी.
'सलिल' सभी के सदा काम जी-
आये, चल दे कर सलाम जी..
निठुर-काल के व्याल-जाल का
मोह-पाश व्यंजन मत करना.....
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बहुत उत्तम!!
जवाब देंहटाएंजब देना हो दो विराम जी-
जवाब देंहटाएंलेकिन लेना तनिक थाम जी..
सच यही तो परम अभिलाषा है ...
कुछ रच पाए कलम सार्थक-
निरुद्देश्य मंचन मत करना..
कितना सुन्दर विचार ...
उत्तम भाव लिए श्रेष्ठतम रचना के लिए आपको धन्यवाद !
आ.सलिल जी ,
जवाब देंहटाएंदीपावली के शुभ-पर्व पर आपने मुझे याद किया बहुत अच्छा लगा ,ये सद्-कामनाएं अपने पूरे परिवार सहित शिरोधार्य करती हूँ .
हमारी ऐसी ही मंगल-कामनाएँ आप सपरिवार स्वीकार करें और अनुग्रहीत करें .
सब स्वजनों को मेरा यथोचित आशीष एवं नमन.
सादर ,
प्रतिभा सक्सेना.
आ० आचार्य जी,
जवाब देंहटाएंधनतेरस पर आपकी तेरह अभिलाषाएं पढ़ कर
मन मुग्ध हुआ | साधुवाद |
कमल
आचार्य सलिल ,
जवाब देंहटाएंआप लिखते रहें सदा सर्वदा,
खुश रहे आपपर सर्वदा शारदा.
ये नदी यूँ ही बहती रहे गीत की, हम भी लेते रहे नित्य इसका मज़ा.
Your's ,
Achal Verma
आद० आचार्य जी अभिवादन
जवाब देंहटाएंधनतेरस पर आपका, पाया सुंदर गीत
काश सभी को ही मिले,गीत, मीत, संगीत
बधाई स्वीकारें
डा० अजय जनमेजय
बहुत खुब सलिल जी, बहुत दिन बाद राउर लिखल पढे के मिलल, लेकिन हमेशा नियन बेहतरीन। एही तरह लिखत रहीं। जय भोजपुरी...
जवाब देंहटाएंआदरणीय सलिल जी -
जवाब देंहटाएंआप की नेह नर्मदा में नित डुबकी लगाना किसे न सुहाएगा भला| आप जैसे स्थापित राष्ट्रीय गीतकार की मौजूदगी इस आयोजन की आभा को और अधिक प्रकाशमान कर रही है| जैसा कि लोग कहते हैं आप के बारे में - आप स्वयँ एक शब्दकोष हैं! कितने सारे शब्द और उनके सार्थक प्रयोग देखने को मिले इस बार भी| आप के स्नेह की सरिता में हम लोगों को हर रोज एक डुबकी लगाने को ज़रूर मिलनी चाहिए, ऐसी हमारी प्रबल इच्छा है|
निठुर-काल के व्याल-जाल का
मोह-पाश व्यंजन मत करना.....
बातों बातों में संदेश देने की आपकी कला यहाँ भी देखने को मिली| व्यंजनों से प्यार तो है हम लोगों को, पर साहित्यिक व्यंजनों से - असाहित्यिक व्यंजनों से नहीं|
आपकी इन पंक्तियों से आपकी सहृदयता द्रुष्टिगोचर होती है:
अब न सुनामी हो सुनाम जी,
शांति-राज दे, लो प्रणाम जी.
'सलिल' सभी के सदा काम जी-
आये, चल दे कर सलाम जी..
सलिल जी मेरे मन में एक शंका है, आप से पूछने का मन हो रहा है इसलिए अधिकार के साथ पूछ रहा हूँ| इस मुक्तक की चौथी पंक्ति में प्रयुक्त शब्द 'आए' - क्या यह तीसरी और चौथी दोनो पंक्तियों के कथ्य से जुड़ा हुआ है? कृपया मेरी शंका का समाधान अवश्य करें| यहाँ मैं आप से कुछ सीखने की चेष्टा भी कर रहा हूँ| और वो भी आप से प्राप्त अधिकार के साथ!!!!!!!!
आपका स्नेह बनाए रखिएगा सलिल जी|
'सलिल' सभी के सदा काम जी-
जवाब देंहटाएंआये, चल दे कर सलाम जी..
आत्मीय नवीन जी!
वन्दे मातरम.
आपने अपनी सूक्ष्म अवलोकन शक्ति से सही आकलन किया है. यहाँ 'आये' पूर्व पंक्ति के साथ भी संयुक्त है और अंतिम पंक्ति के साथ भी. गद्य होता तो 'आये' का दो बार प्रयोग उचित होता पर पद्य की लय और पदभार के संतुलन हेतु एक बार प्रयोग किया गया है.
एक निवेदन और: जिन शब्दों के अंत में 'या' हो वहां स्त्रीलिंग में 'यी' तथा बहुवचन में 'ये' होना चाहिए- ऐसी मेरी जानकारी है. यथा: आया, आयी, आये. इसी तरह जिन शब्दों के अंत में 'आ' हो वहाँ क्रमश: 'ई' तथा 'ए' होना चाहिए. यथा हुआ, हुई, हुए. यदि मेरी जानकारी गलत हो तो कृपया, सही जानकारी दें ताकि मैं सुधार कर सकूँ.
आप सभी ने पीठ ठोंककर उत्साह बढ़ाया, धन्यवाद. जो कुछ टूटा-फूटा कह पता हूँ नत मस्तक हो प्रभाकर के चरणों में इस विनय के साथ रख देता हूँ कि कृपा कर अज्ञान-तिमिर को अपनी ज्ञान-किरणों से कुछ दूर कर दें.
वाह सलिल जी ये तो बड़ी ही महत्वपूर्ण जानकारी साझा की है आपने| मैं इसे गाँठ बाँध कर रखूँगा| | आपकी जय हो|
जवाब देंहटाएंआदरणीय आचार्य सलिल जी, आपका हर गीत कमाल का होता है ! इस विधा पर आपका जो अबूर है वह बहुत ही शक्तिशाली है ! इस सुंदर गीत के लिए दिल से बधाई देता हूँ आपको !
जवाब देंहटाएंआपके स्नेहौदार्य को नमन. अभी तो तुकबन्दी सीख ही रहा हूँ. आप जैसे जानकारके उत्साहवर्धन से प्रेरणा मिलती है.
जवाब देंहटाएंआदरणीय आचार्य सलिल जी, आज कल गीत तो बहुत लोग लिख रहे हैं मगर जो रवानी आपके गीतों में देखने को मिलती है वो कहीं भी और दिखाई नहीं देती है ! साधुवाद इस झरने की रवानी लिए गीत के लिए !
जवाब देंहटाएंपुनः धन्यवाद.
जवाब देंहटाएंबहुत ही प्रवाहमय, सुन्दर गीत एक बार फिर आचार्य जी की कलम से।
जवाब देंहटाएंउत्साहवर्धन हेतु धन्यवाद.
जवाब देंहटाएंबेहतरीन गीत है, बहुत ही मोहक गीत है, प्रवाह बहुत ही बढ़िया, कही भी अटकाव की स्थिति नहीं बनती है | बहुत बहुत बधाई |
जवाब देंहटाएंआपका आभार शत-शत.
जवाब देंहटाएंआती सुंदर बहुत खूब बस असैही लिखाल करी
जवाब देंहटाएंसलिल जी प्रणाम आ जय भोजपुरी
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर गीत , सामान्य तौर पे धनतेरस के गीत कही पढे के ना मिलेला लेकिन राउर एह गीत के पढला के बाद इहो अरमान पुरा हो गईल ।
बहुते नीमन रचना , आ बहुत सुन्दर प्रस्तुति ।
धन्यवाद आ जय भोजपुरी
sundar pravaahpurna rachna!
जवाब देंहटाएंregards,
आध्यात्म और भक्ति रस के चरम को स्पर्श करता यह गीत ...बहुत बहुत मनभाया. बहुत आभार !
जवाब देंहटाएंआपको सपरिवार प्रकाश पर्व की हार्दिक शुभकामनाएँ !!
गिरीश बिल्लोरे …
जवाब देंहटाएंबहुत उम्दा रचना
वाह आचार्य जी वाह
सुकुमार गीतकार राकेश खण्डेलवाल
बहुत सुन्दर रचना!
जवाब देंहटाएंधन तेरस पर आज कोई रचना पढ़ने को ही नही मिली थी!
आपने मेरी प्यास बुझा दी!
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प्रेम से करना "गजानन-लक्ष्मी" आराधना।
आज होनी चाहिए "माँ शारदे" की साधना।।
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आप खुशियों से धरा को जगमगाएँ!
दीप-उत्सव पर बहुत शुभ-कामनाएँ!!
achhi kavita
जवाब देंहटाएंaadarniy salil ji aap ki har ek kawita achchhi lagti. shabdo ka sahi prayog kya kahne,
जवाब देंहटाएंप्रभु धन दे निर्धन मत करना.
माटी को कंचन मत करना....
Aap mahaan ho Salil Ji. Aapke vichaar bhee aapki hi tarah mahaan hain.
जवाब देंहटाएंभावों का प्रागट्य ही, है शब्दों का काम.
जवाब देंहटाएंशब्दब्रम्ह आराधिये रहकर सदा अनाम..
शेष न धरकर शेष धर, कलम हो रही मौन.
'सलिल समझ पाया तभी, लिखा रहा है कौन?
सलिल जी। सुंदर गीत के लिए बधाई।
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