* लोकगीत:
हाँको न हमरी कार.....
संजीव 'सलिल'
*
पोंछो न हमरी कार
नाज़ुक-नाज़ुक मोरी कलाई,
गोरी काया मक्खन-मलाई.
तुम कागा से सुघड़, कहे जग-
'बिजुरी-मेघ' पुकार..
ओ सैयां! पोछो न हमरी कार.
पोछो न हमरी कार,
ओ बलमा! हाँको न हमरी कार.....
*
संग चलेंगी मोरी गुइयां,
तनक न हेरो बिनको सैयां.
भरमाये तो कहूँ राम सौं-
गलन ना दइहों दार..
ओ सैयां! पोछो न हमरी कार.
पोछो न हमरी कार,
ओ बलमा! हाँको न हमरी कार.....
*
बनो डिरेवर, हाँको गाड़ी.
कैहों सबसे 'बलम अनाड़ी'.
'सलिल' संग केसरिया कुल्फी-
खैहों, न करियो रार..
ओ सैयां! पोछो न हमरी कार.
पोछो न हमरी कार,
ओ बलमा! हाँको न हमरी कार.....
*
दिव्यनर्मदा.ब्लागस्पाट.कॉम
Acharya Sanjiv Salil
http://divyanarmada.blogspot.com
संजीव 'सलिल'
*
पोंछो न हमरी कार
ओ बलमा! हाँको न हमरी कार.....
हाँको न हमरी कार,
ओ बलमा! हाँको न हमरी कार.....
*हाँको न हमरी कार,
ओ बलमा! हाँको न हमरी कार.....
नाज़ुक-नाज़ुक मोरी कलाई,
गोरी काया मक्खन-मलाई.
तुम कागा से सुघड़, कहे जग-
'बिजुरी-मेघ' पुकार..
ओ सैयां! पोछो न हमरी कार.
पोछो न हमरी कार,
संग चलेंगी मोरी गुइयां,
तनक न हेरो बिनको सैयां.
भरमाये तो कहूँ राम सौं-
गलन ना दइहों दार..
ओ सैयां! पोछो न हमरी कार.
पोछो न हमरी कार,
ओ बलमा! हाँको न हमरी कार.....
बनो डिरेवर, हाँको गाड़ी.
कैहों सबसे 'बलम अनाड़ी'.
'सलिल' संग केसरिया कुल्फी-
खैहों, न करियो रार..
ओ सैयां! पोछो न हमरी कार.
पोछो न हमरी कार,
ओ बलमा! हाँको न हमरी कार.....
*
दिव्यनर्मदा.ब्लागस्पाट.कॉम
Acharya Sanjiv Salil
http://divyanarmada.blogspot.com
इन विधाओं पर लिखे देखना-पढ़ना सुखद आश्चर्य देता है, सलिलजी.
जवाब देंहटाएंआपने उस पलड़े पर जिम्मेदारी भरा वजन रखा है जिस पर अक्सर पासंग भर रख कर काम चला लिया जाता है अब..
//संग चलेंगी मोरी गुइयां,
तनक न हेरो बिनको सैयां.
भरमाये तो कहूँ राम सौं-
गलन ना दइहों दार..
ओ सैयां! पोछो हमारी कार.
पोछो हमारी कार, ओ बलमा! पोछो हमारी कार..//
गुंइयाँ को साथ लिवाने की आशा भी और बलम से डर भी.. अय हय!! .
वैसे इन पंक्तियों में कुछ शब्द मुझे अनजाने लगे हैं..
और ’हमारी कार’ से बेहतर क्या ’हमरी कार’ होता? .. बता कर अनुगृहित कीजिएगा.
बड़ा मजा आया है पढ़ कर.. हमने अपने पिताजी को भी पढ़ कर सुनाया है.. देर तक मुग्ध देखा उन्हें. इस दवा की खुराक असर कर गयी है..
सलिल जी हृदय से धन्यवाद..
बहुत अच्छी प्रस्तुति। हार्दिक शुभकामनाएं!
जवाब देंहटाएंचक्रव्यूह से आगे, आंच पर अनुपमा पाठक की कविता की समीक्षा, आचार्य परशुराम राय, द्वारा “मनोज” पर, पढिए!
ZEAL :
जवाब देंहटाएंBeautiful creation.