तरही मुक्तिका २ :
........ क्यों है?
संजीव 'सलिल'
*
आदमी में छिपा, हर वक़्त ये बंदर क्यों है?
कभी हिटलर है, कभी मस्त कलंदर क्यों है??
आइना पूछता है, मेरी हकीकत क्या है?
कभी बाहर है, कभी वो छिपी अंदर क्यों है??
रोता कश्मीर भी है और कलपता है अवध.
आम इंसान बना आज छछूंदर क्यों है??
जब तलक हाथ में पैसा था, सगी थी दुनिया.
आज साथी जमीं, आकाश समंदर क्यों है??
उसने पर्वत, नदी, पेड़ों से बसाया था जहां.
फिर ज़मीं पर कहीं मस्जिद कहीं मंदर क्यों है??
गुरु गोरख को नहीं आज तलक है मालुम.
जब भी आया तो भगा दूर मछंदर क्यों है??
हाथ खाली रहा, आया औ' गया जब भी 'सलिल'
फिर भी इंसान की चाहत ये सिकंदर क्यों है??
जिसने औरत को 'सलिल' जिस्म कहा औ' माना.
उसमें दुनिया को दिखा देव-पुरंदर क्यों है??
*
बस मै तो केवल आपकी लेखनी को नमन कर सकती हूँ। कुछ कहूँ? नही मेरे कद से बाहर है। शुभकामनायें
जवाब देंहटाएंआप कपिला निर्मला हैं आपको शत-शत नमन.
जवाब देंहटाएं'सलिल' निर्मल रह सके, विचलित तनिक होए न मन.
दीजिए शुभकामना, हो शांति सारे विश्व में.
स्नेह की अँजुरी न रीते, कर सकें हम आचमन..
गुरुदेव, बहुत बढ़िया...हास्य !
जवाब देंहटाएंdhanyavad. isee tarah atee rahiye. aapko ek mahatva poorn kary men hath batana hai.
जवाब देंहटाएंआपने मेरी कही बात को चरितार्थ कर दिखाया| 'तजुर्बे का पर्याय नहीं' |
जवाब देंहटाएंअन्य काफ़िए के साथ ये ग़ज़ल भी धमाका कर रही है सलिल जी|
Kya kehne, bahut khoob
जवाब देंहटाएंआपने मेरी कही बात को चरितार्थ कर दिखाया| 'तजुर्बे का पर्याय नहीं' |
जवाब देंहटाएंअन्य काफ़िए के साथ ये ग़ज़ल भी धमाका कर रही है सलिल जी|
आदरणीय आचार्य जी
जवाब देंहटाएंवाह..
बेहतरीन ग़ज़ल..
गिरह का शेर तो बहुत ही सुन्दर है..
मन प्रफुल्लित हो गया|
मैं तो मंत्रमुग्ध हो गया शब्दों की इस कारीगरी को देखकर, आचार्य जी खुद की इस ग़ज़ल को मुक्तिका कहते हैं तो मैं भी इसे ग़ज़ल कहने का साहस नहीं करूँगा। पर जो भी है अद्भुत, अद्वितीय है। सादर।
जवाब देंहटाएंजिसने औरत को 'सलिल' जिस्म कहा औ' माना.
जवाब देंहटाएंउसमें दुनिया को दिखा देव-पुरंदर क्यों है??
वाह वाह, जबरदस्त, क्या पैनी दृष्टिकोण पाई है आचार्य जी, मज़ा आ गया, बहुत खूब ,