सोमवार, 13 सितंबर 2010

दोहा सलिला: नैन अबोले बोलते..... संजीव 'सलिल'


दोहा सलिला:

नैन अबोले बोलते.....

संजीव 'सलिल'
*
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*
नैन अबोले बोलते, नैन समझते बात.
नैन राज सब खोलते, कैसी बीती रात.
*
नैन नैन से मिल झुके, उठे लड़े झुक मौन.
क्या अनकहनी कह गए, कहे-बताये कौन?.
*
नैन नैन में बस हुलस, नैन चुराते नैन.
नैन नैन को चुभ रहे, नैन बन गए बैन..
*
नैन बने दर्पण कभी, नैन नैन का बिम्ब.
नैन अदेखे देखते, नैनों का प्रतिबिम्ब..
*
गहरे नीले नैन क्यों, उषा गाल सम लाल?
नेह नर्मदा नहाकर, नत-उन्नत बेहाल..
*
मन्मथ मन मथ मस्त है. दिव्य मथानी देह.
सागर मंथन ने दिया अमिय, नहीं संदेह..
*
देह विदेहित जब हुई, मिला नैन को चैन.
आँख नैन ने फेर ली, नैन हुए बेचैन..
*
आँख दिखाकर नैन को, नैन हुआ नाराज़.
आँख मूँदकर नैन है, मौन कहो किस व्याज..
*
पानी आया आँख में, बेमौसम बरसात.
आँसू पोछे नैन चुप, बैरन लगती रात..
*
अंगारे बरसा रही आँख, धरा है तप्त.
किसके नैनों पर हुआ, नैन कहो अनुरक्त?.
*
नैन चुभ गए नैन को, नैन नैन में लीन.
नैन नैन को पा धनी, नैन नैन बिन दीन..
****
http://divyanarmada.blogspot.com

14 टिप्‍पणियां:

  1. सलिल जी,

    नमन.

    पढ़ के लगा कि कह बैठूँ--


    ग़ालिब -ग़ज़ल पठन के सौ सुख
    नैनन के पढ़ि दोहे बिसारौं


    सभी एक से एक सुंदर हैं लेकिन निम्न का अंदाज़ तो सबसे ही अलग है--



    देह विदेहित जब हुई, मिला नैन को चैन.
    आँख नैन ने फेर ली, नैन हुए बेचैन..
    *

    --ख़लिश

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  2. आचार्य सलिल जी,
    अति सुन्दर!
    "जिगर" का शेर याद आया
    "महशर में बात भी न ज़ुबाँ से निकल सके
    क्या झुक के कुछ निगाह ने समझा दिया मुझे"
    सस्नेह
    सीताराम चंदावरकर

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  3. टकराए जब नैन से नैन, खलिश दी खूब.
    सीताराम निवास हैं, नैन भक्ति में डूब..

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  4. हिन्दी दीपक जल रहा, लेकर अमिट प्रकाश.
    हरता तम अज्ञान का, क्यों हों सुजन निराश.

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  5. आदरणीय सलिल जी,
    बहुत सुन्दर ! बहुत पहले आदरणीय शकुन्तला जी का भेजी हुई एक रचना की याद आ गई! उसमें भी यूँ ही नयनों का विश्लेषण था.

    ये तो बहुत ही सुन्दर लगे:

    नैन बने दर्पण कभी, नैन नैन का बिम्ब.
    नैन अदेखे देखते, नैनों का प्रतिबिम्ब..

    देह विदेहित जब हुई, मिला नैन को चैन.
    आँख नैन ने फेर ली, नैन हुए बेचैन..

    नैन चुभ गए नैन को, नैन नैन में लीन.
    नैन नैन को पा धनी, नैन नैन बिन दीन.. ...........उफ्फ! ये तो इतनी सुन्दर पंक्ति कि जैसे मीराबाई ने लिखी हो
    ...आप इसकी प्रथम पंक्ति के पूर्वार्ध को भी प्रेमभाव का क्यों नहीं कर देते आचार्य जी ...फ़िर ये कितनी सुन्दर हो जायेगी !
    आभार आपका !
    सादर शार्दुला

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  6. आपका आदेश शिरोधार्य:

    नैन बस गए नैन में, नैन नैन में लीन.

    नैन नैन को पा धनी, नैन नैन बिन दीन..

    नैन शार्दूला चपल, नैन हिरनिया भीत.
    इसने उसको अभय दे, नयी बनाई रीत..

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  7. आदरणीय सलिल जी,

    अच्छे दोहे हैं इस बार|

    अंतिम वाला तो एक दम शास्त्रीय परंपरा का दोहा है|

    आपकी रचनाओ में कुछ हस्ताक्षर शब्द आपकी पहचान कर देते हैं| नेह नर्मदा, दिव्या नर्मदा आदि
    बधाई!
    सादर
    अमित

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  8. आदरणीय आचार्यजी ,
    अति सुन्दर दोहे सदैव की तरह बधाई
    सादर
    श्रीप्रकाश शुक्ल

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  9. श्री प्रकाश पा नैन हैं, सचमुच ही अमिताभ.
    श्यामल रतनारे कभी, कभी रक्त अरुणाभ..

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  10. अलंकारों का इतना खुबसूरत प्रयोग ये नैन अभी तक नहीं देखें थे, बहुत ही सुन्दर रचना, शब्दों की कमी है तारीफ़ मैं कैसे करूँ , नैनों की बात है नैन जरूर समझ लेंगे |

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  11. नैन नैन में बस हुलस, नैन चुराते नैन.
    नैन नैन को चुभ रहे, नैन बन गए बैन..
    अतिसुंदर ,,,,अतिसुंदर ,,,,
    शब्द डर रहे हे क्योंकि तारीफ़ मैं कमी तो फ़िर भी रहेगी...

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  12. मन्मथ मन मथ मस्त है. दिव्य मथानी देह.
    सागर मंथन ने दिया अमिय, नहीं संदेह..
    नयनों पर चलती काव्य मथनी ने नयनों का मंथन कर डाला ! सुन्दर !
    बधाई सर ...

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  13. नैन कल्पना कर रहे, 'सलिल' अपर्णा नैन.
    भट नागर बागी बने, हो तब ही सुख-चैन..

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  14. वाह आचार्य जी वाह, टिप्पणी मे भी दोहा, साथ मे सबको समेट भी लिये, वाह नतमस्तक हूँ ,

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