गीत:
हर दिन मैत्री दिवस मनायें.....
संजीव 'सलिल'
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हर दिन मैत्री दिवस मनायें.....
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होनी-अनहोनी कब रुकती?
सुख-दुःख नित आते-जाते हैं.
जैसा जो बीते हैं हम सब
वैसा फल हम नित पाते हैं.
फिर क्यों एक दिवस मैत्री का?
कारण कृपया, मुझे बतायें
हर दिन मैत्री दिवस मनायें.....
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मन से मन की बात रुके क्यों?
जब मन हो गलबहियाँ डालें.
अमराई में झूला झूलें,
पत्थर मार इमलियाँ खा लें.
धौल-धप्प बिन मजा नहीं है
हँसी-ठहाके रोज लगायें.
हर दिन मैत्री दिवस मनायें.....
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बिरहा चैती आल्हा कजरी
झांझ मंजीरा ढोल बुलाते.
सीमेंटी जंगल में फँसकर-
क्यों माटी की महक भुलाते?
लगा अबीर, गायें कबीर
छाछ पियें मिल भंग चढ़ायें.
हर दिन मैत्री दिवस मनायें.....
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bahut sunder
जवाब देंहटाएंबिरहा चैती आल्हा कजरी
जवाब देंहटाएंझांझ मंजीरा ढोल बुलाते.
सीमेंटी जंगल में फँसकर-
क्यों माटी की महक भुलाते?
अच्छी रचना आचार्य जी , खुबसूरत शब्दों का संगम है तथा बहुत ही सुंदर अभिव्यक्ति है, बधाई ,
होनी-अनहोनी कब रुकती?
जवाब देंहटाएंसुख-दुःख नित आते-जाते हैं.
जैसा जो बीते हैं हम सब
वैसा फल हम नित पाते हैं.
अति सुन्दर, बहुत अच्छी रचना है आचार्य जी, साधुवाद.
मान्यवर सलिल जी, मेरे मुंह से आपकी तारीफ करना सूर्य को दीपक दिखाने के समान है फिर भी थोड़ी धृष्टता करना चाहूँगा. मैत्री-दिवस तो रोज होना ही चाहिए परन्तु अब तो दुनिया सिमट कर इतनी छोटी हों गयी है कि "अपने" का अर्थ "अ" = स्वयं, "प"= पत्नी और "ने" = नेना, इसके अलावा तो सब दूर हों गए. साल में एक बार भी इस बहाने याद कर लेते हैं तो कम नहीं है. शुक्रिया
जवाब देंहटाएंहोनी-अनहोनी कब रुकती? सुख-दुःख नित आते-जाते हैं. जैसा जो बीते हैं हम सब वैसा फल हम नित पाते हैं. आचार्य जी प्रणाम....बहुत ही बढ़िया रचना है आचार्य जी....
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