गुरुवार, 19 अगस्त 2010

गीत: मंजिल मिलने तक चल अविचल..... संजीव 'सलिल'

गीत:
मंजिल मिलने तक चल अविचल.....
संजीव 'सलिल'
*

















*
लिखें गीत हम नित्य न भूलें, है कोई लिखवानेवाला.
कौन मौन रह मुखर हो रहा?, वह मन्वन्तर और वही पल.....
*
दुविधाओं से दूर रही है, प्रणय कथा कलियों-गंधों की.
भँवरों की गुन-गुन पर हँसतीं, प्रतिबंधों की व्यथा-कथाएँ.
सत्य-तथ्य से नहीं कथ्य ने  तनिक निभाया रिश्ता-नाता
पुजे सत्य नारायण लेकिन, सत्भाषी सीता वन जाएँ.

धोबी ने ही निर्मलता को लांछित किया, पंक को पाला
तब भी, अब भी सच-साँचे में असच न जाने क्यों पाया ढल.....
*
रीत-नीत को बिना प्रीत के, निभते देख हुआ उन्मन जो
वही गीत मनमीत-जीतकर, हार गया ज्यों साँझ हो ढली.
रजनी के आँसू समेटकर, तुहिन-कणों की भेंट उषा को-
दे मुस्का श्रम करे दिवस भर, संध्या हँसती पुलक मनचली.

मेघदूत के पूत पूछते, मोबाइल क्यों नहीं कर दिया?
यक्ष-यक्षिणी बैकवर्ड थे, चैट न क्यों करते थे पल-पल?.....
*
कविता-गीत पराये लगते, पोयम-राइम जिनको भाते.
ब्रेक डांस के उन दीवानों को अनजानी लचक नृत्य की.
सिक्कों की खन-खन में खोये, नहीं मंजीरे सुने-बजाये
वे क्या जानें कल से कल तक चले श्रंखला आज-कृत्य की.

मानक अगर अमानक हैं तो, चालक अगर कुचालक हैं तो
मति-गति , देश-दिशा को साधे, मंजिल मिलने तक चल अविचल.....
*******
दिव्यनर्मदा.ब्लॉगस्पोट.कॉम

8 टिप्‍पणियां:

  1. सलिल जी,

    असाधारण कविता है.

    सलिल और राकेश हैं, किसके लागूँ पाय
    नहला-दहला हो रहे, समझ कछू न आय.


    --ख़लिश

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  2. सब महिमा है खलिश की, बने प्रेरणा-शक्ति.
    नई लिखकर लिखवाये भी सहज काव्य अनुरक्ति

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  3. आदरणीय ,
    कौन मौन रह मुखर हो रहा?, वह मन्वन्तर और वही पल.....सुन्दर!
    *
    .
    सत्य-तथ्य से नहीं कथ्य ने तनिक निभाया रिश्ता-नाता
    पुजे सत्य नारायण लेकिन, सत्भाषी सीता वन जाएँ. --- बहुत सटीक!

    *
    रीत-नीत को बिना प्रीत के, निभते देख हुआ उन्मन जो
    वही गीत मनमीत-जीतकर, हार गया ज्यों साँझ हो ढली.--- वाह!

    मेघदूत के पूत पूछते, मोबाइल क्यों नहीं कर दिया?
    यक्ष-यक्षिणी बैकवर्ड थे, चैट न क्यों करते थे पल-पल?..... :)
    *
    कविता-गीत पराये लगते, पोयम-राइम जिनको भाते.
    ब्रेक डांस के उन दीवानों को अनजानी लचक नृत्य की.
    सिक्कों की खन-खन में खोये, नहीं मंजीरे सुने-बजाये
    वे क्या जानें कल से कल तक चले श्रंखला आज-कृत्य की. --- सुन्दर!

    मानक अगर अमानक हैं तो, चालक अगर कुचालक हैं तो --- ये बहुत सुन्दर लगता है ऐसा लिखा हुआ
    मति-गति , देश-दिशा को साधे, मंजिल मिलने तक चल अविचल --- आमीन और वाह!
    सादर शार्दुला

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  4. आत्मीय शार्दुला जी!
    वन्दे मातरम.
    आपने गीत की अंतरात्मा को स्पर्श कर सटीक टिप्पणियाँ का मुझे जन्मदिन पर मनचाहा उपहार दिया. आभारी हूँ.
    ऐसे पाठक, ऐसे श्रोता, ऐसे मिलते कहाँ पारखी.
    जब मिल जाएँ तभी उतरती गीतों की नित नयी आरती.
    माँ शारद के कंठ सुशोभित सुमन-कुसुम गीतों की लय-धुन
    कुरुक्षेत्र में कविताओं के, शार्दूला हैं गीत सारथी.

    रवि-राकेश अचल, नर्तित हो रश्मि करे रथियों को चंचल.
    कौन मौन रह मुखर हो रहा?, वह मन्वन्तर और वही पल.....
    *
    Acharya Sanjiv Salil

    http://divyanarmada.blogspot.com

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  5. naya prayog lagta hai ye to salil ji:-

    मेघदूत के पूत पूछते, मोबाइल क्यों नहीं कर दिया?

    यक्ष-यक्षिणी बैकवर्ड थे, चैट न क्यों करते थे पल-पल?....

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  6. आचार्य जी,

    आपको जन्मदिवस की बहुत बहुत शुभकामनायें और बधाई।

    सादर
    मानोशी

    www.manoshichatterjee.blogspot.com

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  7. एक करारा व्यंग्य आज के समाज पर्……………बहुत बढिया

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  8. राणा प्रताप सिंह

    आचार्य जी सादर प्रणाम
    बदलते मूल्यों और सामाजिक परिवेश पर एक सटीक व्यंग|
    ब्रह्मांड

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