बुधवार, 21 जुलाई 2010

hasya rachna: दिल मगर जवान है... ख़लिश - सलिल - कमल

दिल मगर जवान है...

ख़लिश - सलिल - कमल
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१.ख़लिश
साठ और पाँच साल हो चले तो हाल है
झुर्रियाँ बदन पे और डगमगाई चाल है

है रगों में ख़ून तो अभी भी गर्म बह रहा
क्या हुआ लटक रही कहीं-कहीं पे खाल है

पान की गिलौरियों से होंठ लाल-लाल हैं
ग़म नहीं पिचक रहा जो आज मेरा गाल है

बदगुमान हैं बड़े वो हुस्न के ग़ुरूर में
कह रहे हैं शर्म कर, सिर पे तेरे काल है

ढल गईं जवानियाँ, दिल मगर जवान है
शायरी का यूँ ख़लिश हो गया कमाल है.

महेश चंद्र गुप्त ख़लिश
(Ex)Prof. M C Gupta
MD (Medicine), MPH, LL.M.,
Advocate & Medico-legal Consultant
www.writing.com/authors/mcgupta44
२. 'सलिल'

साठ और पाँच साल के सबल जवान हैं.
तीर अब भी है जुबां, कमर भले कमान है..
 
खार की खलिश सहें, किन्तु आह ना भरें. 
देखकर कली कहें: वाह! क्या उठान है?
 
शेर सुना शेर को पल में दूर दें भगा.
जो पढ़े वो ढेर हो, ब्लॉग ही मचान है. 
 
बाँकपन अभी भी है, अलहदा शबाब है.
बिन पिए चढ़ा नशा दूर हर थकान है..
 
तिजोरी हैं तजुर्बों की, खोल माल बाँट लो--
'सलिल' देख हौसला, भर रहे उड़ान है.
३. कमल 

शायरी का कमाल साठ औ  पांच में ही  सिर चढ़ कर बोल रहा है 
मैं अस्सी और पांच के करीब पहुँच कर भी शायरी के कुंवारेपन से नहीं 
उबर पा रहा हूँ |  वैसे शायरी अद्भुत दवा है एक लम्बी उमर पाने के लिये |
 
खाल लटक जाय चाल डगमगाय गाल पिचक जाय 
किन्तु शायरी सिमट जाय भला  क्या मजाल है
हो गीतों गजलों की  हाला कल्पना बनी हो मधुबाला 
ढल जाय उमर उस मधुशाला में तो क्या मलाल है  |

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आप सबका बहुत धन्यवाद. सलिल जी, आपकी आशु-कविता ज़बर्दस्त है.

1 टिप्पणी:

  1. भाई , इस नोक झोक ने तो मज़ा ला दिया |
    "पढके इन कवित्त को मेरा तो बुरा हाल है ,
    हंसी नहीं है रुक रही , हुए जो सुर्ख गाल हैं ,
    कोई नहीं है पास में , यूं खुल के हंस रहा हूँ मैं,
    अगर कोई हो सुनरहा तो बोलेगा , कमाल है ||"

    आप तीनों गुनीजनों को मेरे सादर प्रणाम ||

    Your's ,

    Achal Verma

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