मंगलवार, 20 जुलाई 2010

हास्य कुण्डली: संजीव 'सलिल'
















हास्य कुण्डली:

संजीव 'सलिल'
*
घरवाली को छोड़कर, रहे पड़ोसन ताक.
सौ चूहे खाकर बने बिल्ली जैसे पाक..
बिल्ली जैसे पाक, मगर नापाक इरादे.
काश इन्हें इनकी कोई औकात बतादे..
भटक रहे बाज़ार में, खुद अपना घर छोड़कर.
रहें न घर ना घाट के, घरवाली को छोड़कर..
*
सूट-बूट सज्जित हुए, समझें खुद को लाट.
अंगरेजी बोलें गलत, दिखा रहे हैं ठाठ..
दिखा रहे हैं ठाठ, मगर मन तो गुलाम है.
निज भाषा को भूल, नामवर भी अनाम है..
हुए जड़ों से दूर, पग-पग पर लज्जित हुए.
घोडा दिखने को गधे, सूट-बूट सज्जित हुए..
*
गाँव छोड़ आये शहर, जबसे लल्लूलाल.
अपनी भाषा छोड़ दी, तन्नक नहीं मलाल..
तन्नक नहीं मलाल, समझते खुद को साहब.
हँसे सभी जब सुना: 'पेट में हैडेक है अब'..
'फ्रीडमता' की चाह में, भटकें तजकर ठाँव.
होटल में बर्तन घिसें, भूले खेती-गाँव..
*

13 टिप्‍पणियां:

  1. मज़ेदार कुंडलियाँ। और हर कुंडली में हकी़क़त का पुट भी :-)

    सादर
    मानोशी

    www.manoshichatterjee.blogspot.com

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  2. संजीब जी
    मज़ेदार कुण्ड्लियाँ है । इनको पढ़कर फिर एक शंका का निवारण कीजिए । अभी कुछ दिनों पूर्व कुण्डलियों के बारे में ई-कविता में चर्चा हुई थी दर असल इन्ही चर्चाऒं से ज्ञान वॄद्धी होती है तब कहा गया था कि कुण्ड़्ली दोहा और रोला से मिल कर बनती है जिसमें छ: चरण होते है दो दोहे के तथा चार रोला के । दूसरे चरण के अन्तिम भाग की तीसरे चरण के प्रथम भाग में पुनरावृत्ति होती है एवं रोला में ११ व १३ पर यति होती है जब रोला में प्रत्येक चरण में ११वीं मात्रा लघु होती है तो उसे ’काव्य छ्न्द’ कहा जाता है जिसका प्रयोग कुण्ड्लियों में होना चाहिए। तथा प्रत्येक चरण में २४ -२४ मात्राएं होतीं है जैसे

    गुन के गाहक सहस नर, बिन गुन लहे न कोय ---१३ + ११ = २४
    जैसे कागा कोकिला, शब्द सुने सब कोय । ( दोहा) --- १३ + ११ = २४
    शब्द सुने सब कोय, कोकिला सबै सुहावन --- ११ + १३ = २४
    दोऊ को इक रंग, कागला गनै अपावन । --- ११ + १३ = २४
    कह गिरधर कविराय, सुनो हो ठाकुर मन के --- ११ + १३ = २४
    बिन गुन लहै न कोय, सहस नर गाहक गुन के । (रोला) ११ + १३ = २४ ( ११वीं मात्रा सभी में लघु है)

    आपकी निम्न लिखित कुण्डलियों में इन बातों से अलग हैं क्या कुछ और भी नियम हैं ?


    घरवाली को छोड़कर, रहे पड़ोसन ताक. --- १३ + ११ =२४
    सौ चूहे खाकर बने बिल्ली जैसे पाक.. --- १३ + ११ = २४
    बिल्ली जैसे पाक, मगर नापाक इरादे. --- ११ + १३ = २४
    काश इन्हें इनकी कोई औकात बतादे.. --- ११ + १३ = २४
    भटक रहे बाज़ार में, खुद अपना घर छोड़कर.--- १३ + १३ = २६
    रहें न घर ना घाट के, घरवाली को छोड़कर.. --- १३ + १३ = २६
    *
    सूट-बूट सज्जित हुए, समझें खुद को लाट. --- १३ + ११ = २४
    अंगरेजी बोलें गलत, दिखा रहे हैं ठाठ.. --- १३ + ११ = २४
    दिखा रहे हैं ठाठ, मगर मन तो गुलाम है. --- ११ + १३ = २४
    निज भाषा को भूल, नामवर भी अनाम है.. --- ११ + १३ = २४
    हुए जड़ों से दूर, पग-पग पर लज्जित हुए. --- ११ + १३ = २४
    घोडा दिखने को गधे, सूट-बूट सज्जित हुए.. --- १३ + १३ = २६
    *
    गाँव छोड़ आये शहर, जबसे लल्लूलाल. --- १३ + ११ = २४
    अपनी भाषा छोड़ दी, तन्नक नहीं मलाल.. --- १३ + ११ = २४
    तन्नक नहीं मलाल, समझते खुद को साहब. --- ११ + १३ = २४
    हँसे सभी जब सुना: 'पेट में हैडेक है अब'.. ---११ + १४ = २५
    'फ्रीडमता' की चाह में, भटकें तजकर ठाँव. --- १३ + ११ =२४
    होटल में बर्तन घिसें, भूले खेती-गाँव.. --- १३ + ११ = २४

    शरद तैलंग

    *

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  3. !बढ़िया ,चुभता हुआ हास्य ! लपेट में आ जाएँगे बहुत से !
    - प्रतिभा

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  4. hasya v vyang ka anutha sangam
    badhaee salilji badhaee

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  5. आचार्य ’सलिल’ जी,
    हास्य कुण्डलियाँ पढकर बहुत मज़ा आया।

    "हँसे सभी जब सुना: 'पेट में हैडेक है अब'..

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  6. आ० आचार्य जी ,
    तीनों कुण्डलियाँ हास्य व्यंग की प्रभावी कृति हैं |
    kml

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  7. आ. शरद जी की बात से सहमत हूँ कि ये कुण्डलियाँ शास्त्रीय मानकों पर खरी नहीं उतरतीं| इस मंच पर कुंडलियों को लेकर एक बार पहले भी charcha हो चुकी है अतः निवेदन है कि ऐसे स्थापित छंदों का प्रयोग करते समय छंदानुशासन का भी ध्यान रखा जाय तो अच्छा है| यदि किसी प्रकार का भ्रम है तो उसका निवारण भी हो सकता है| शरद जी ने इसे रेखांकित किया एतदर्थ धन्यवाद| इससे इस विधा के नव्प्रवेसी सजग हो सकेंगे|
    सादर
    अमित

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  8. डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' …मंगलवार, जुलाई 27, 2010 6:39:00 pm

    हास्य के रंग बिखेरती कुण्डलियाँ बहुत बढ़िया रहीं!

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  9. ब्लॉगर प्रवीण पाण्डेय हा…मंगलवार, जुलाई 27, 2010 6:40:00 pm

    बड़ी सुन्दर।

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  10. ब्लॉगर गिरीश बिल्लोरे …मंगलवार, जुलाई 27, 2010 6:40:00 pm

    पाण्डे जी कौन सुन्दर है
    हा हा हा

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  11. ब्लॉगर संगीता स्वरुप ( गीत ) …मंगलवार, जुलाई 27, 2010 6:41:00 pm

    बहुत सुन्दर कुण्डलियाँ हैं...अच्छा व्यंग

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