मुक्तिका:
प्यार-मुहब्बत नित कीजै..
संजीव 'सलिल'
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अंज़ाम भले मरना ही हो हँस प्यार-मुहब्बत नित कीजै..
रस-निधि पाकर रस-लीन हुए, रस-खान बने जी भर भीजै.
जो गिरता वह ही उठता है, जो गिरे न उठना क्या जाने?
उठकर औरों को उठा, न उठने को कोई कन्धा लीजै..
हो वफ़ा दफा दो दिन में तो भी इसमें कोई हर्ज़ नहीं
यादों का खोल दरीचा, जीवन भर न याद का घट छीजै..
दिल दिलवर या कि ज़माना ही, खुश या नाराज़ हो फ़िक्र न कर.
खुश रह तू अपनी दुनिया में, इस तरह कि जग तुझ पर रीझै..
कब आया कोई संग, गया कब साथ- न यह मीजान लगा.
जितने पल जिसका संग मिला, जी भर खुशियाँ दे-ले जीजै..
अमृत या ज़हर कहो कुछ भी पीनेवाले पी जायेंगे.
आनंद मिले पी बार-बार, ऐसे-इतना पी- मत खीजै..
नित रास रचा- दे धूम मचा, ब्रज से यूं.एस. ए.-यूं. के. तक.
हो खलिश न दिल में तनिक 'सलिल' मधुशाला में छककर पीजै..
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बेहतरीन मुक्तिका...सलिल जी को बधाई.
जवाब देंहटाएंकब आया कोई संग, गया कब साथ- न यह मीजान लगा.
जवाब देंहटाएंजितने पल जिसका संग मिला, जी भर खुशियाँ दे-ले जीजै..
....Bahut khub kaha..badhai.
सलिल जी ने तो समां ही बांध दिया...मुबारक हो.
जवाब देंहटाएंवाह बहुत ही सुन्दर.
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर.......
जवाब देंहटाएंप्यार-मुहब्बत नित कीजै.. बिना इसके तो दुनिया भी अधूरी है. अच्छी रचना के लिए सलिल जी को बधाई.
जवाब देंहटाएंसुमन शिखा शहरोज़ की, आकांक्षा हो पूर्ण.
जवाब देंहटाएंश्वास राधिका आस हो कृष्ण, रास परिपूर्ण.
नेह-नर्मदा स्नान कर, कर रत्नेश निनाद.
'सलिल' प्राण का प्राण से, हो हर पल संवाद..