गुरुवार, 22 जुलाई 2010

नवगीत: संजीव 'सलिल' --अपना हर पल है हिन्दीमय

नवगीत:
संजीव 'सलिल'
अपना हर पल है हिन्दीमय.....
*











*
अपना हर पल
है हिन्दीमय
एक दिवस
क्या खाक मनाएँ?
बोलें-लिखें
नित्य अंग्रेजी
जो वे
एक दिवस जय गाएँ...
निज भाषा को
कहते पिछडी.
पर भाषा
उन्नत बतलाते.
घरवाली से
आँख फेरकर
देख पडोसन को
ललचाते.
ऐसों की
जमात में बोलो,
हम कैसे
शामिल हो जाएँ?...
हिंदी है
दासों की बोली,
अंग्रेजी शासक
की भाषा.
जिसकी ऐसी
गलत सोच है,
उससे क्या
पालें हम आशा?
इन जयचंदों 
की खातिर
हिंदीसुत
पृथ्वीराज बन जाएँ...
ध्वनिविज्ञान-
नियम हिंदी के
शब्द-शब्द में 
माने जाते.
कुछ लिख,
कुछ का कुछ पढने की
रीत न हम
हिंदी में पाते.
वैज्ञानिक लिपि,
उच्चारण भी
शब्द-अर्थ में
साम्य बताएँ...
अलंकार,
रस, छंद बिम्ब,
शक्तियाँ शब्द की
बिम्ब अनूठे.
नहीं किसी
भाषा में  मिलते,
दावे करलें
चाहे झूठे.
देश-विदेशों में
हिन्दीभाषी
दिन-प्रतिदिन
बढ़ते जाएँ...
अन्तरिक्ष में
संप्रेषण की
भाषा हिंदी
सबसे उत्तम.
सूक्ष्म और
विस्तृत वर्णन में
हिंदी है
सर्वाधिक
सक्षम.
हिंदी भावी
जग-वाणी है
निज आत्मा में
'सलिल' बसाएँ...
********************
-दिव्यनर्मदा.ब्लागस्पाट.कॉम

15 टिप्‍पणियां:

  1. अति सुन्दर , बधाई !
    कमल

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  2. आदरणीय सलिल जी,
    अति सुन्दर गीत .बधाई
    मैं चाह्ता था कि हिन्दी की गरिमा अक्षुण रखने के लिए कुछ ठोस् कदम खोजे जाएँ कृपया अपने सुझावों से मुझे मेरे व्यक्तिगत पते पर अवगत करा सकें तो आभारी रहूँगा .
    पता है
    wgcdrsps@gmail.com
    सादर
    श्रीप्रकाश शुक्ल

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  3. सलिल जी,

    पढ़ कर चित्त प्रसन्न हो गया. सही, सुंदर लिखा है.

    खिन्न भी हुआ, यह सोच कर कि कवि तो हिंदी महिमा गा लेते हैं, किंतु मेरे विचार से ऐसे लोगों की बहुत कमी है जो हिंदी के भाषा विज्ञानी हों तथा साथ हे अन्य भाषाओं के साथ हिम्दी का तुलनात्मक अध्ययन आधुनिक वैज्ञानिक तरीके से करने की क्षमता रखते हों.

    --ख़लिश

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  4. जिसे जहाँ जो कम दिखे, पूर्ति करे बढ़ आप.
    भाषा का अध्ययन करे, कीर्ति सके जग-व्याप..

    माँ की महिमा गा 'सलिल', हो जाता है धन्य.
    जगह न कोई ले सके, माँ है दिव्य अनन्य..
    *
    मौसी-चाची विश्व की, भाषाओँ को जान.
    आदर सबका कर, न दे, तू माँ का स्थान..
    *

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  5. बिना चले कैसे मिले मंजिल?, मत हो खिन्न.
    कदम बढ़ा पग चूम ले, मंजिल बने अभिन्न..
    *
    आत्मा में हिन्दी बसा, गा हिन्दी के गीत.
    'सलिल' व्यथा मिट जाएगी, शेष रहेगी प्रीत..
    *
    हिन्दी में जो बोलते, वही लिखेंगे आप.
    पढ़ें वही जो लिखा है, सके शुद्धता व्याप..
    *
    उच्चारण लघु-दीर्घ हो, जैसा वैसा मान.
    मात्रा की गणना करें, घट-बढ़ को त्रुटि मान..
    *
    गिरा न कोई मात्रा, छोड़ न कोई शब्द.
    सबको सबका स्थान दे, रहे न कोई निशब्द..
    *
    अन्तरिक्ष में भेजते, वैज्ञानिक संकेत.
    हिन्दी में इसलिए कि, समझ सकें अनिकेत..
    *
    शब्द सम्पदा अमित है, जान सके तो जान.
    हिन्दी को मत दोष दे, दोषी तव अज्ञान..
    *
    हिन्दी-अरबी-फ़ारसी, लशकर में हो एक.
    हुईं हिन्दवी- लोक की, भाषा कहे विवेक..
    *
    कालांतर में मिल गया, उर्दू इसको नाम.
    शैली हिन्दी की 'सलिल', कर तू इसे सलाम..
    *
    'सलिल' नजाकत-नफासत, उर्दू का वैशिष्ट्य.
    गैर न इसको मान तू, बिसरा मत नैकट्य..
    *
    बुन्देली अवधी बिरज, भोजपुरी भी जान.
    बोल निमाड़ी मालवी, राजस्थानी गान..
    *
    जान अंगिका बज्जिका, शेखावाटी बोल.
    सीख 'सलिल' हरयाणवी, काठियावाड़ी घोल..
    *
    छत्तीसगढ़ी गले बसा, गुँजा मैथिली गीत.
    द्वेष सभी मिट जायेगा, शेष रहेगी प्रीत.
    *
    बोल बांगला मराठी, गुजराती ले जान.
    मलयालम कन्नड़ तमिल, तेलुगु क्यों अनजान?
    *
    असमी कश्मीरी नहीं, गैर डोगरी मान.
    लद्दाखी, गुरुमुखी से, कर ले कुछ पहचान.
    *
    हर भाषा भगवान की, इंसां को वरदान.
    सीख-समझ ले कुछ 'सलिल', हो जा तू रसखान..
    ********

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  6. आचार्य सलिल ,
    आपकी विचार धारा से मैं बहुत प्रभावित हूँ |
    हमारी भाषा कितनी खूबसूरत है , हमें ही इसका पता नहीं |
    यह इसलिए की हमें दिनकर, निराला ,पन्त , महादेवी , जय शंकर प्रसाद या मैथिलीशरण गुप्त आदि कवियों की राह से ज्यादा फ़िल्मी गीतों के कवियों की कला पसंद है | कुछेक लोग ही ऐसे हैं जो अपने मानस में इनकी झलक अभी तक बनाए हुए हैं |
    इस भाषा के पनपने से हम सब का मान सम्मान भी बढेगा , शायद मेरी ये सोंच सबको पसंद नहीं आई | खेद है ||

    Your's ,

    Achal Verma

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  7. अति सुन्दर!
    सस्नेह
    सीताराम चंदावरकर

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  8. 'जय-जय सीताराम' की, स्वीकारें सब मीत.
    अभिवादन की यह प्रथा, अचल लुटाये प्रीत..

    हिन्दी ही सबसे करे, राम-राम हा रोज़..
    खलिश न रख, खिल कमल सी, सबको देती ओज..

    श्री-प्रकाश नित लुटाती, दे सारस्वत ज्ञान.
    कहें भारती 'सलिल' यह, भारत माँ की जान..

    चारण हिन्दी का 'सलिल', जन्म-जन्म हो तात.
    हिन्दी-हित जी-मर सके, हिन्दी ही है मात..

    चाची मौसी मामियाँ, बुआ सभी श्रद्धेय.
    ज्ञेय मात्र माता 'सलिल', शेष सभी अज्ञेय..

    आपने आशीष दिया, आभारी हूँ.
    *
    Acharya Sanjiv Salil

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  9. अति सुन्दर |

    राम तुम्हारा नाम , स्वयं ही काव्य है |
    कोई कवि बन जाय, सहज संभाव्य है |
    राम नाम मणि दीप धरु , जीह देहरी द्वार |
    तुलसी भीतर बाहेरहूँ , जो चाहेसी उजियार |
    Your's ,

    Achal Verma

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  10. सलिल जी
    सीताराम !
    नवगीत के रूप में आपके दोहे शानदार हैं ।

    श्री-प्रकाश नित लुटाती, दे सारस्वत ज्ञान.
    कहें भारती 'सलिल' यह, भारत माँ की जान..
    इस दोहे को पढ़ने पर मुझे कुछ प्रवाह में रुकावट महसूस होती है जबकि मात्राएं तो बराबर हैं । क्या कारण हो सकता है ?
    शरद तैलंग

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  11. श्रीप्रकाश-वर्षण करे, दे सारस्वत ज्ञान.
    कहें भारती भी 'सलिल', भारत माँ की जान..

    क्या अब प्रवाह ठीक हुआ?

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  12. आ० सलिल जी,
    दोहमय स्नेहोद्गारों से अभिभूत हूँ |
    कमल

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  13. हाँ ! अब ठीक लग रहा है । दोनों में क्या अन्तर है कृपया उसको explain भी कर दीजिए । क्या कुछ गणों के संयोजन का असर है या कुछ और ?

    आभार सहित
    शरद तैलंग

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  14. जी , गण दोष के कारण प्रवाह बाधित होता है. त्रुटि रह जाने का खेद है. त्रुटि इंगित करने हेतु आभार.

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  15. सभी भाषाओँ के प्रति आदरभाव की सुन्दर अभिव्यक्ति.
    महेश चन्द्र द्विवेदी

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