बुधवार, 21 जुलाई 2010

नव गीत: बहुत छला है..... संजीव 'सलिल'

नव गीत:

बहुत छला है.....

संजीव 'सलिल'
*











*
बहुत छला है
तुमने राम....
*
चाहों की
क्वांरी सीता के
मन पर हस्ताक्षर
धनुष-भंग कर
आहों का
तुमने कर डाले.
कैकेयी ने
वर कलंक
तुमको वन भेजा.
अपयश-निंदा ले
तुमको
दे दिये उजाले.
जनगण बोला:
विधि है वाम.
बहुत छला है
तुमने राम....
*
शूर्पनखा ने
करी कामना
तुमको पाये.
भेज लखन तक
नाक-कान
तुमने कटवाये.
वानर, ऋक्ष,
असुर, सुर
अपने हित मरवाये.
फिर भी दीनबन्धु
करुणासागर
कहलाये.
कह अकाम
साधे निज काम.
बहुत छला है
तुमने राम....
*
सीता मैया
परम पतिव्रता
जंगल भेजा.
राज-पाट
किसकी खातिर
था कहो सहेजा?
लव-कुश दे
माँ धरा समायीं
क्या तुम जीते?
डूब गए
सरयू में
इतने हुए फजीते.
नष्ट अयोध्या
हुई अनाम.
बहुत छला है
तुमने राम....
************
दिव्यनर्मदा.ब्लॉगस्पोट.कॉम

4 टिप्‍पणियां:

  1. संगीता स्वरुप :बुधवार, जुलाई 21, 2010 6:18:00 pm

    आक्सर मैंने भी यही बातें सोची हैं...जिनका वर्णन इस नवगीत में किया है...सार्थक अभिव्यक्ति



    संगीता स्वरुप

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  2. सुनील पाठक दैनिक जागरण अयोध्याबुधवार, जुलाई 21, 2010 6:51:00 pm

    aapki कविता के मुख्य estemaal कर्ण chahunga आप तो हाय नाम से.
    धन्यवाद
    सुनील पाठक दैनिक जागरण
    अयोध्या
    9453996725
    05278224268 (ओ)
    05278228568 (एफ)

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  3. राजभाषा हिंदी ...मंगलवार, जुलाई 27, 2010 6:30:00 pm

    बहुत अच्छी प्रस्तुति।
    राजभाषा हिन्दी के प्रचार-प्रसार में आपका योगदान सराहनीय है।

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