नव गीत:
बहुत छला है.....
संजीव 'सलिल'
*
*
बहुत छला है
तुमने राम....
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चाहों की
क्वांरी सीता के
मन पर हस्ताक्षर
धनुष-भंग कर
आहों का
तुमने कर डाले.
कैकेयी ने
वर कलंक
तुमको वन भेजा.
अपयश-निंदा ले
तुमको
दे दिये उजाले.
जनगण बोला:
विधि है वाम.
बहुत छला है
तुमने राम....
*
शूर्पनखा ने
करी कामना
तुमको पाये.
भेज लखन तक
नाक-कान
तुमने कटवाये.
वानर, ऋक्ष,
असुर, सुर
अपने हित मरवाये.
फिर भी दीनबन्धु
करुणासागर
कहलाये.
कह अकाम
साधे निज काम.
बहुत छला है
तुमने राम....
*
सीता मैया
परम पतिव्रता
जंगल भेजा.
राज-पाट
किसकी खातिर
था कहो सहेजा?
लव-कुश दे
माँ धरा समायीं
क्या तुम जीते?
डूब गए
सरयू में
इतने हुए फजीते.
नष्ट अयोध्या
हुई अनाम.
बहुत छला है
तुमने राम....
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दिव्यनर्मदा.ब्लॉगस्पोट.कॉम
Etips-Blog Team :
जवाब देंहटाएंwhat means?
Etips-Blog Team
आक्सर मैंने भी यही बातें सोची हैं...जिनका वर्णन इस नवगीत में किया है...सार्थक अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंसंगीता स्वरुप
aapki कविता के मुख्य estemaal कर्ण chahunga आप तो हाय नाम से.
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
सुनील पाठक दैनिक जागरण
अयोध्या
9453996725
05278224268 (ओ)
05278228568 (एफ)
बहुत अच्छी प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंराजभाषा हिन्दी के प्रचार-प्रसार में आपका योगदान सराहनीय है।